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Sunday 23 August 2020

दाँत के दर्द मे उपयोगी उपचार/NATURAL REMEDIES FOR TOOTHACHE

 

दांतों में दर्द के कारण कि किसी काम में मन ही नहीं लगता और खाने-पीने से लेकर सोने तक में हमें तकलीफ होती है। अगर आप भी दांतों के दर्द से परेशान हैं या इससे हमेशा बचें रहना चाहते हैं तो ये हैं आपके लिए कुछ खास बातें जिन्हें जानेंगे तो दांत के दर्द से बचे रहेंगे-
दांत दर्द के कारण और लक्षण
1. दांत में संक्रमण।
2. कान में दर्द।
3. साइनस संक्रमण।
4.जबड़े में चोट आदि दांतों में दर्द के कुछ प्रमुख कारण हैं।
कुछ आयुर्वेदिक उपाय-
1. दांत के दर्द से मुक्ति का एक प्राकृतिक विकल्प सरसों का तेल है। एक चुटकी नमक के साथ मिला कर इसे मसूढ़े के प्रभावित हिस्से पर मालिश करनी चाहिए।
2. नींबू के रस की कुछ बूंदें दांतों पर मलें, दांतों का दर्द दूर हो जाएगा।
3. फ्लोराइड टूथपेस्ट से ब्रश करें। माऊथ वॉश का यूज करें।
4. हर छ: महीने में दांतों के डॉक्टर से अपने दांतों की जांच करवाएं।
कैसे रखें दांतों का ख्याल-
* एस्प्रिन या एस्प्रिन वाले उत्पाद न लें।
* गर्म व ठंडा खाने से बचें।
* लौंग का फाहा दर्द वाले स्थान पर रखें।
*मुंह की अच्छी तरह से देखभाल करें।. मसूढ़े या दांत के प्रभावित हिस्से पर प्याज का ताजा कटा हुआ टुकड़ा रखें। दर्द बंद हो जाएगा।

हर्निया ,आंत उतरने के उपचार HOME REMEDIES FOR HERNIA

 

आम तौर पर हर्निया होने का कारण पेट की दीवार का कमजोर होना है |पेट और जांघों के बीच वाले हिस्से मे जहां पेट की दीवार कमजोर पड़ जाती है वहाँ आंत का एक गुच्छा उसमे छेद बना कर बाहर निकल आता है | उस स्थान पर दर्द होने लगता है | इसी को आंत्र उतरना,आंत्रवृद्धि या हर्निया कहते हैं|
एबडॉमिनल वॉल के कमजोर भाग के अंदर का कोई भाग जब बाहर की ओर निकल आता है तो इसे हर्निया कहते हैं। हर्निया में जांघ के विशेष हिस्से की मांसपेशियों के कमजोर होने के कारण पेट के हिस्से बाहर निकल आते हैं। हर्निया की समस्या जन्मजात भी हो सकती है। ऐसी स्थिति में इसे कॉनजेनाइटल हर्निया कहते हैं। हर्निया एक वक्त के बाद किसी को भी हो सकता है। आमतौर पर लोगों को लगता है कि हर्निया का एकमात्र इलाज सर्जरी है जिसकी वजह से वे डॉक्टर के पास जाने से डरते हैं। लेकिन ऐसा नहीं है हर्निया बिना सर्जरी के भी ठीक हो सकता है।
जब किसी व्यक्ति की आंत अपने जगह से उतर जाती है तो उस व्यक्ति के अण्डकोष की सन्धि में गांठे जैसी सूजन पैदा हो जाती है जिसे यदि दबाकर देखा जाए तो उसमें से कों-कों शब्द की आवाज सुनाई देती हैं। आंत उतरने का रोग अण्डकोष के एक तरफ पेड़ू और जांघ के जोड़ में अथवा दोनों तरफ हो सकता है। जब कभी यह रोग व्यक्ति के अण्डकोषों के दोनों तरफ होता है तो उस रोग को हार्निया रोग के नाम से जाना जाता है। वैसे इस रोग की पहचान अण्डकोष का फूल जाना, पेड़ू में भारीपन महसूस होना, पेड़ू का स्थान फूल जाना आदि। जब कभी किसी व्यक्ति की आंत उतर जाती है तो रोगी व्यक्ति को पेड़ू के आस-पास दर्द होता है, बेचैनी सी होती है तथा कभी-कभी दर्द बहुत तेज होता है और इस रोग से पीड़ित व्यक्ति की मृत्यु भी हो सकती है। कभी-कभी तो रोगी को दर्द भी नहीं होता है तथा वह धीरे से अपनी आंत को दुबारा चढ़ा लेता है। आंत उतरने की बीमारी कभी-कभी धीरे-धीरे बढ़ती है तथा कभी अचानक रोगी को परेशान कर देती है।
प्राकृतिक चिकित्सा के अनुसार देखा जाए तो आंत निम्नलिखित कारणों से उतर जाती है-
1. कठिन व्यायाम करने के कारण आंत उतरने का रोग हो जाता है।
2. पेट में कब्ज होने पर मल का दबाव पड़ने के कारण आंत उतरने का रोग हो जाता है।
3. भोजन सम्बन्धी गड़बड़ियों तथा शराब पीने के कारण भी आंत अपनी जगह से उतर जाती है।
4. मल-मूत्र के वेग को रोकने के कारण भी आंत अपनी जगह से उतर जाती है।
5. खांसी, छींक, जोर की हंसी, कूदने-फांदने तथा मलत्याग के समय जोर लगाने के कारण आंत अपनी जगह से उतर जाती है।6. पेट में वायु का प्रकोप अधिक होने से आंत अपनी जगह से उतर जाती है।
7. अधिक पैदल चलने से भी आंत अपनी जगह से उतर जाती है।
8. भारी बोझ उठाने के कारण भी आंत अपनी जगह से उतर जाती है।
9. शरीर को अपने हिसाब से अधिक टेढ़ा-मेढ़ा करने के कारण आंत अपनी जगह से उतर जाती है।
जिस हर्निया में आंत उलझ कर गाँठ लग गयी हो और मरीज को काफी तकलीफ हो रही हो, ऐसे बिगड़े केस में तत्काल ऑपरेशन जरुरी है. बाकी सभी मामलों में हार्निया बिना आपरेशन के ही ठीक हो सकता है.
हर्निया की प्रारम्भिक स्थिति मे  पेट की दीवार मे कुछ उभार सा  प्रतीत होता है| इस आगे बढ़ी हुई आंत को पीछे भी धकेला जा सकता है लेकिन ज्यादा ज़ोर लगाना उचित नहीं है|
*अगर  आगे बढ़ी आंत को आराम से पीछे  धकेलकर  अपने स्थान पर पहुंचा दिया जाए तो  उसे उसी स्थिति मे रखने के लिए कस कर बांध  देना चाहिए| यह तरीका असफल हो जाये तो फिर आपरेशन की सलाह  देना उचित है|
*पेट की तोंद ज्यादा निकली हुई हो तो उसे भी घटाने के उपचार जरूरी होते हैं|
*अरंडी का तेल दूध मे मिलाकर  पीने से हर्निया ठीक हो  जाता है |इसे एक माह तक करें|
*काफी पीने से भी बढ़ी हुई आंत के रोग मे फायदा होता है|
हर्निया या आंत उतरने का मूल कारण पुराना कब्ज है। कब्ज के कारण बडी आंत मल भार से अपने स्थान से खिसककर नीचे लटकने लगती है। मल से भरी नीचे लटकी आंत गांठ की तरह लगती है। इसी को हार्निया या आंत उतरना कहते हैं।
*कुन कुना पानी पीकर 5 मिनिट तक कौआ चाल (योग क्रिया) करके फिर पांच या अधिक से अधिक दस बार तक सूर्य नमस्कार और साथ ही 200 से 500 बार तक कपाल-भांति करने से फूली हुई आंत वापस ऊपर अपने स्थान पर चली जाती है। भविष्य में कभी भी आपको हार्निया और पाइल्स होने की सम्भावना नही होगी।
हर्निया के होम्योपैथिक उपचार –
*सुबह उठते ही सबसे पहले आप सल्फर 200  7 बजे,  दोपहर को आर्निका 200 और रात्रि को खाने के एक से दो घंटे बाद या नौ बजे नक्स वोम 200 की पांच-पांच बूँद आधा कप पानी से एक हफ्ते तक ले, फिर हर तीन से छह माह में तीन दिन तक लें.
*केल्केरिया कार्ब 200 की पांच बूँद आधा कप पानी से पांच दिन तक लें.
*जब भी अचानक जलन, दर्द, सूजन होना, घबराहट, ठंडा पसीना और मृत्यु भय हो, तो एकोनाइट 30 की पांच बूँद आधा कप पानी से हर घंटे में लें.
*जब दाहिने भाग में हार्निया हो, तो लाइकोपोडियम 30 की पांच बूँद आधा कप पानी से दिन में तीन बार लें.
आंत उतरने से पीड़ित व्यक्ति का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार:-
1. प्राकृतिक चिकित्सा के अनुसार जब किसी व्यक्ति की आंत उतर जाती है तो रोगी व्यक्ति को तुरन्त ही शीर्षासन कराना चाहिए या उसे पेट के बल लिटाना चाहिए। इसके बाद उसके नितम्बों को थोड़ा ऊंचा उठाकर उस भाग को उंगुलियों से सहलाना और दबाना चाहिए। जहां पर रोगी को दर्द हो रहा हो उस भाग पर दबाव हल्का तथा सावधानी से देना चाहिए। इस प्रकार की क्रिया करने से रोगी व्यक्ति की आंत अपने स्थान पर आ जाती है। इस प्रकार से रोगी का उपचार करने के बाद रोगी को स्पाइनल बाथ देना चाहिए, जिसके फलस्वरूप रोगी व्यक्ति की पेट की मांसपेशियों की शक्ति बढ़ जाती है तथा अण्डकोष संकुचित हो जाते हैं।2. रोगी की आंत को सही स्थिति में लाने के लिए उसके शुक्र-ग्रंथियों पर बर्फ के टुकड़े रखने चाहिए जिसके फलस्वरूप उतरी हुई आंत अपने स्थान पर आ जाती है।3. यदि किसी समय आंत को अपने स्थान पर लाने की क्रिया से आंत अपने स्थान पर नहीं आती है तो रोगी को उसी समय उपवास रखना चाहिए। यदि रोगी के पेट में कब्ज हो रही हो तो एनिमा क्रिया के द्वारा थोड़ा पानी उसकी बड़ी आंत में चढ़ाकर, उसमें स्थित मल को बाहर निकालना चाहिए इसके फलस्वरूप आंत अपने मूल स्थान पर वापस चली जाती है।
4. प्राकृतिक चिकित्सा के अनुसार इस रोग का उपचार करने के लिए हार्निया की पट्टी का प्रयोग करना चाहिए। इस पट्टी को सुबह के समय से लेकर रात को सोने के समय तक रोगी के पेट पर लगानी चाहिए। यह पट्टी तलपेट के ऊपर के भाग को नीचे की ओर दबाव डालकर रोके रखती है जिसके फलस्वरूप रोगी को बहुत अधिक लाभ मिलता है। इस प्रकार से रोगी का उपचार करने से उसकी मांसपेशियां सख्त हो जाती हैं और रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है। ठीक रूप से लाभ के लिए रूग्णस्थल (रोग वाले भाग) पर प्रतिदिन सुबह और शाम को चित्त लेटकर नियमपूर्वक मालिश करनी चाहिए। मालिश का समय 5 मिनट से आरम्भ करके धीरे-धीरे बढ़ाकर 10 मिनट तक ले जाना चाहिए। रोगी के शरीर पर मालिश के बाद उस स्थान पर तथा पेड़ू पर मिट्टी की गीली पट्टी का प्रयोग लगभग आधे घण्टे तक करना चाहिए। जिसके फलस्वरूप यह रोग ठीक हो जाता है।

5. प्राकृतिक चिकित्सा के अनुसार रोगी व्यक्ति के पेट पर मालिश और मिट्टी लगाने तथा रोगग्रस्त भाग पर भाप देने से बहुत अधिक लाभ मिलता है।

6. इस रोग का इलाज करने के लिए पोस्ता के डोण्डों को पुरवे में पानी के साथ पकाएं तथा जब पानी उबलने लगे तो उसी से रोगी के पेट पर भाप देनी चाहिए और जब पानी थोड़ा ठंडा हो जाए तो उससे पेट को धोना चाहिए। जिसके फलस्वरूप यह रोग ठीक हो जाता है।

निम्नलिखित व्यायामों के द्वारा आंत उतरने के रोग को ठीक किया जा सकता है-

1. यदि आंत उतर गई हो तो उसका उपचार करने के लिए सबसे पहले रोगी के पैरों को किसी से पकड़वा लें या फिर पट्टी से चौकी के साथ बांध दें और हाथ कमर पर रखें। फिर इसके बाद रोगी के सिर और कन्धों को चौकी से 6 इंच ऊपर उठाकर शरीर को पहले बायीं ओर और फिर पहले वाली ही स्थिति में लाएं और शरीर को उठाकर दाहिनी ओर मोड़े। फिर हाथों को सिर के ऊपर ले जाएं और शरीर को उठाने का प्रयत्न करें। यह कसरत कुछ कठोर है इसलिए इस बात का ध्यान रखें कि अधिक जोर न पड़े। सबसे पहले इतनी ही कोशिश करें जिससे पेशियों पर तनाव आए, फिर धीरे-धीरे बढ़ाकर इसे पूरा करें। इसके फलस्वरूप यह रोग ठीक हो जाता है।

2. प्राकृतिक चिकित्सा से इस रोग का उपचार करने के लिए सबसे पहले रोगी व्यक्ति को सीधे लिटाकर उसके घुटनों को मोड़ते हुए पेट से सटाएं और तब तक पूरी लम्बाई में उन्हें फैलाएं जब तक उसकी गति पूरी न हो जाए और चौकी से सट न जाए। इस प्रकार से रोगी का इलाज करने से रोगी का रोग ठीक हो जाता है।

3. प्राकृतिक चिकित्सा के अनुसार रोगी व्यक्ति का इलाज करने के लिए रोगी के दोनों हाथों को फैलाकर चौकी के किनारों को पकड़ाएं और उसके पैरों को जहां तक फैला सकें उतना फैलाएं। इसके बाद रोगी के सिर को ऊपर की ओर फैलाएं। इससे रोगी का यह रोग ठीक हो जाता है।

4. रोगी व्यक्ति का इलाज करने के लिए रोगी व्यक्ति को हाथों से चौकी को पकड़वाना चाहिए। फिर इसके बाद रोगी अपने पैरों को ऊपर उठाते हुए सिर के ऊपर लाएं और चौकी की ओर वापस ले जाते हुए पैरों को लम्बे रूप में ऊपर की ओर ले जाएं। इसके बाद अपने पैरों को पहले बायीं ओर और फिर दाहिनी ओर जहां तक नीचे ले जा सकें ले जाएं। इस क्रिया को करने में ध्यान इस बात पर अधिक देना चाहिए कि जिस पार्श्व से पैर मुड़ेंगे उस भाग पर अधिक जोर न पड़े। यदि रोगी की आन्त्रवृद्धि दाहिनी तरफ है तो उस ओर के पैरों को मोड़ने की क्रिया बायीं ओर से अधिक बार होनी चाहिए। इस प्रकार से रोगी का उपचार करने से रोगी की आंत अपनी जगह पर आ जाती है।
5. कई प्रकार के आसनों को करने से भी आंत अपनी जगह पर वापस आ जाती है जो इस प्रकार हैं- अर्द्धसर्वांगासन, पश्चिमोत्तानासन, भुजंगासन, सर्वांगासन, शीर्षासन और शलभासन आदि।
6. आंत को अपनी जगह पर वापस लाने के लिए सबसे पहले रोगी को पहले दिन उपवास रखना चाहिए। इसके बाद रोग को ठीक करने के लिए केवल फल, सब्जियां, मट्ठा तथा कभी-कभी दूध पर ही रहना चाहिए। यदि रोगी को कब्ज हो तो सबसे पहले उसे कब्ज का इलाज कराना चाहिए। फिर सप्ताह में 1 दिन नियमपूर्वक उपवास रखकर एनिमा लेना चाहिए। इसके बाद सुबह के समय में कम से कम 1 बार ठंडे जल का एनिमा लेना चाहिए और रोगी व्यक्ति को सुबह के समय में पहले गर्म जल से स्नान करना चाहिए तथा इसके बाद फिर ठंडे जल से। फिर सप्ताह में एक बार पूरे शरीर पर वाष्पस्नान भी लेना चाहिए। इस रोग से पीड़ित रोगी को तख्त पर सोना चाहिए तथा सोते समय सिर के नीचे तकिया रखना चाहिए। इस रोग से पीड़ित रोगी को अपनी कमर पर गीली पट्टी बांधनी चाहिए। इससे रोगी व्यक्ति को बहुत अधिक लाभ मिलता है।
7. इस रोग से पीड़ित रोगी को गहरी नीली बोतल के सूर्यतप्त जल को लगभग 50 मिलीलीटर की मात्रा में रोजाना लगभग 6 बार लेने से बहुत अधिक लाभ मिलता है।

Wednesday 16 October 2019

आँखों की रोशनी बढ़ाने का रामबाण उपाय

हमारी आँखें शरीर का सबसे महत्वपूर्ण और आकर्षक अंग है। सुंदर आँखों का महत्व तब तक है जब तक आँखों की रौशनी अच्छी हो अन्यथा आपकी सुंदर आँखों पर मोटे नाटे चश्मे आपकी सुन्दरता को ग्रहण लगा देते है अथवा आपको लेंस लगाने की परेशानियों में पड़ना होगा।

आइये जानते है आँखों की रौशनी बढाने और चश्मा उतारने के लिए कौन कौन से देशी उपाय अपना सकते है 

आँखों की रोशनी बढ़ाने का रामबाण उपाय


1. नेति उपचार किसी योगप्रशिक्षक की सहायता से करने से आँखों की रौशनी बढती है और चश्मा उतर जाता है।
2. सुबह सो कर उठने के बाद मुंह की लार आँखों में काजल की तरह लगाओ अगर छोटे बच्चो को आँखों पर  चश्मे लगे है तो उन्हें इस उपाय से जल्दी लाभ मिलेगा लेकिन बड़ों को थोडा समय लग सकता है लेकिन फायदा जरुर होता है।
3. मुंह की लार कन्जक्टीवाइटिस जैसे रोग में लगाने से 24 घंटे में ही लाभ करती है।
4. मुहं की लार आँखों का भेंगापन दूर करने में भी सहायक है।
5. केसर की चाय नियमित पिने से आँखों की रौशनी बढती है और चश्मा उतर जाता है।
6. त्वचा रोगों में जैसे की सोरायसिस अथवा दाद -खुजली में भी मुहं की लार का प्रयोग कर सकते है।
7. देशी गाय का गौमुत्र एक एक बूँद प्रतिदिन आँखों में डालने से आँखों का चश्मा उतर जाता है।
8. देशी गाय का गौमूत्र प्रतिदिन आँखों में डालने से  मोतियाबिंद दूर होता है।
9. बादामगिरी , सोंफ बडिवाली और मिश्री को बराबर मात्रा में कूटपीसकर चुर्ण बना लें और किसी कांच के बर्तन में इसका संग्रह कर लें। अब प्रतिदिन रात्री  में सोने से पुर्व 10 ग्राम की मात्रा में देशी गाय के 250 ग्राम दूध के साथ 40 दिन तक लेने से आँखों की रौशनी बढती है और चश्मे की आवश्यकता नहीं पड़ती। छोटे बच्चो को मात्रा आधी कर के दें और इस चुर्ण का सेवन करने के बाद कम से कम २ घंटे कुच्छ भी खाना/पीना नहीं है। इस प्रयोग से मस्तिष्क की कमजोरी भी ठीक होती है।

Garam Pani Ke Fayde | गरम पानी पीने के फायदे



HOT WATER BENIFITS IN HINDI : पृथ्वी की सतह लगभग 70% पानी से घिरा है जिसमें से 97% खारा पानी है और 3% मीठा पानी अर्थात पीने योग्य पानी है। पानी हमारे जिंदगी के लगभग सभी महत्वपूर्ण कार्यों में जरूरी होता है। पृथ्वी पर पाए जाने वाले सभी जीव-जंतु पानी पर निर्भर करते हैं। हमारा Body भी संतुलित रहने के लिए पानी पर निर्भर करता है।हेल्थ एक्सपर्ट के अनुसार मनुष्य को स्वस्थ रहने के लिए एक दिन में कम से कम 4 से 5 लीटर पानी-पीना चाहिए। पानी हमारे शरीर में खाना पचाने में, Blood-Circulation में, लार (Sliva) बनाने में, Nutrients को एक जगह से दूसरे जगह पहुँचने में मदद करता है।

वैसे देखा जाय तो प्रायः सभी लोग या तो ठंडा पानी-पीना पसंद करता है या साधारण पानी। लेकिन हेल्थ एक्सपर्ट के अनुसार गरम पानी का सेवन हमारे स्वास्थ्य के लिए ज्यादा फायदेमंद है। क्योंकि यह हमारे Body को बहुत से बीमारियों से बचाता है। इसी कारण Doctor बहुत से रोगियों को गरम पानी पीने की सलाह देता है। फिल्टर हुए पानी को Boil करने पर यह 100% शुद्ध एवं पीने लायक हो जाता है। गरम पानी पीने में अच्छा नहीं लगता है लेकिन हेल्थ Benifit को देखते हुए इसका सेवन आपको भी करना चाहिए। Lukewarm Water अर्थात गरम पानी दिन में तीन बार पीना चाहिए लेकिन सुबह खाली पेट पीना ज्यादा फायदेमंद साबित होता है। तो आइए जानते हैं गरम पानी पीने के क्या फायदे और क्या लाभ है।

HEALTH BENIFITS OF HOT WATER IN HINDI

1.) विषैला-पदार्थ को बाहर निकालता है।
Lukewarm Water पीने से हमारे शरीर मे मौजूद अशुद्धियाँ एवं विषैला पदार्थ बाहर निकल जाता है। जब हम गरम पानी पीते हैं तो हमारे शरीर का तापमान बढ़ जाता है जिसके कारण पसीना (Sweat) बाहर आता है। हमारे Body में मौजूद विषाक्त पदार्थ पसीना के साथ बाहर निकल जाता है। विषैला पदार्थ का बाहर निकलना जरूरी है क्योंकि शरीर में मौजूद होने पर बहुत सारे बीमारी होने का डर रहता है।

2.) पेट साफ करता है अर्थात कब्ज से मुक्ति।
सुबह खाली पेट गरम पानी पीने से माल त्याग करने में आसानी होती है। पाचन क्रिया के बाद आंत में मल जम जाने के कारण कब्ज की शिकायत हो जाती है। कब्ज होने का मुख्य कारण पानी कम पीना है। लेकिन गरम पानी के सेवन से खाद्य पदार्थ आसानी से इसमें घुल जाता है और मल त्याग करने में दिक्कत नहीं होती है।

3.) वजन कम करता है।
अगर आप बढ़ते वजन से परेशान हैं तो गरम पानी के साथ Lemon जूस और शहद मिलाकर सुबह खाली पेट पीएं। यह हमारे शरीर के Metabolic रेट को बढ़ाता है तथा Body में जमा फैट को नष्ट करता है। इस उपाय को लगातार कुछ महीने करने से हमारा Weight कम होने लगता है।

4.) पाचन क्रिया स्वस्थ रहता है।
हेल्थ एक्सपर्ट के अनुसार खाना-खाने के लगभग 30 मिनट बाद पानी पीना चाहिए। खाना खाने के बाद ठंडा पानी पीने से हमारे भोजन में मौजूद Oil एवं Fat हमारे आंत से चिपकने लगता है जिससे पाचन शक्ति कमजोर होने लगता है। लेकिन खाने के बाद गुनगुना पानी पीने से यह शिकायत नहीं होती है और पाचन क्रिया स्वस्थ बानी रहती है।

5.) मेटाबोलिज्म को सही करता है।
मेटाबोलिज्म ठीक रहने से हमारा शरीर स्वस्थ रहता है और Body का सभी अंग सही से कार्य करता है। गरम पानी पीने से हमारे शरीर का Metabolic रेट बढ़ जाता है जिसके कारण शरीर को Extra ऊर्जा मिलता है। हमारा शरीर पहले से फुर्तीला और हल्का-फुल्का हो जाता है। शरीर से आलस्य दूर हो जाता है और भूख भी ज्यादा लगता है।

Tuesday 8 October 2019

क्या आपको भी है गैस ! जानें कारण, लक्षण और उपाय | गैस्ट्रिक समस्या के लक्षण, कारण, इलाज

क्या आपको भी है गैस ! जानें कारण, लक्षण और उपाय

गैस की तकलीफ (Gas Pain) के लक्षण, कारण, निदान

गैस, घबराहट, छाती में जलन से हैं 

आखिर क्या हैं गैस बनने के बड़े कारण 

गैस की समस्या हमेशा पेट से जुड़ी नहीं होती

गैस्ट्रिक समस्या के लक्षण, कारण, इलाज

कैसे पेट में गैस के कारण होने वाले दर्द से राहत



गैस्ट्रिक समस्या (Gastric Problems) का उपचार क्या है?

गैस्ट्रिक समस्याएं (Gastric Problems) कई कारणों से होती हैं- इनमें अनियंत्रित पीने की आदतें, मसालेदार भोजन की खपत, भोजन को चबाने से पहले ठीक से चबाने, पाचन समस्या, जीवाणु संक्रमण और तनाव और तनाव (swallowing it, digestive trouble, bacterial infections and as well as stress and tension) शामिल नहीं है।
गैस्ट्रिक समस्या (Gastric problem) के लक्षणों में पेट, बुरी सांस, बेल्चिंग और अम्लता गैस (bloating of the stomach, bad breath, belching and acidity coupled) के साथ मिलकर सूजन शामिल है।
गैस्ट्रिक मुसीबत (Gastric problem) के लिए उपचार इस बात पर निर्भर करता है कि क्या आपको गैर-अल्सर डिस्प्सीसिया या पेप्टिक अल्सर (non-ulcer dyspepsia or peptic ulcer) का निदान किया गया है या नहीं। गैर-अल्सर डिस्प्सीसिया (Non-ulcer dyspepsia) को कार्यात्मक डिस्प्सीसिया (functional dyspepsia) के नाम से भी बुलाया जाता है। इसके लिए उपचार में कम खुराक के एंटीड्रिप्रेसेंट्स (antidepressants ) शामिल हैं, दवाएं जो पेट एसिड से लड़ने में मदद करने के लिए चिंता और दवाओं को अस्वीकार करने में मदद करती हैं। पेट एसिड के मुद्दों को कम करने में मदद करने वाली दवाएं एच 2 ब्लॉकर्स (H2 blockers) जैसे रैंटिडाइन, निजाटिडाइन, सिमेटिडाइन, फैगोटीडाइन और प्रोटॉन पंप इनहिबिटर (rantidine, nizatidine, cimetidine, famotidine and proton pump inhibitors) जैसे पैनटोप्राज़ोल, रैबेप्राज़ोल, ओमेपेराज़ोल, लांसोप्राज़ोल (as pantoprazole, rabeprazole, omeprazole, lansoprazole) शामिल हैं। एचपी पिलोरी संक्रमण के कारण होने पर पेप्टिक अल्सर (Peptic ulcer) में थेरेपी (शॉर्ट-टर्म ट्रिपल थेरेपी) (therapy (Short-term triple therapy)) जैसे उपचार शामिल होंगे। इसमें एसिड-कम करने वाले एजेंट और दो एंटीबायोटिक (antibiotics) दवाएं शामिल हैं। डॉक्टरों के अनुसार, तनाव पेप्टिक अल्सर (peptic ulcer) की स्थिति को बढ़ा सकता है। अगर आपकी अल्सर की समस्या का इलाज नहीं किया जाता है तो इसका परिणाम छोटी आंत में या पेट की दीवार क्षेत्र में हो सकता है।

गैस्ट्रिक समस्या (Gastric Problems) का इलाज कैसे किया जाता है?

एच 2 ब्लॉकर्स (H2 blockers) जैसी दवाएं दवाओं की एक श्रेणी हैं जो पेट द्वारा उत्पादित एसिड की मात्रा को कम करके काम करती हैं। जब एक एच 2 रिसेप्टर अवरोधक (H2 receptor blocker) का उपभोग होता है तो इस दवा के भीतर निहित सक्रिय तत्व पेट कोशिकाओं के कुछ निर्दिष्ट क्षेत्रों में जाते हैं। ये अवरोधक पेट में एसिड रिहाई कोशिकाओं (acid releasing cells) को हिस्टामाइन (histamine) पर प्रतिक्रिया करने से रोकते हैं। एच 2 अवरोधक (H2 blockers) पेप्टिक अल्सर (peptic ulcer) को फिर से दिखने से रोकते हैं। आम तौर पर, एच 2 ब्लॉकर्स को पेप्टिक अल्सर (peptic ulcer) की बीमार स्थितियों को तत्काल राहत प्रदान करने के लिए शरीर द्वारा जल्दी से अवशोषित किया जाता है।
शॉर्ट टर्म ट्रिपल थेरेपी उपचार (Short-term triple therapy treatment) हेलीकॉक्टर पिलोरी संक्रमण (Helicobacter Pylori infection) के कारण होने वाली स्थितियों के इलाज में बहुत प्रभावी है। एक सप्ताह की अवधि में 65 रोगियों पर किए गए एक प्रयोग में- शॉर्ट टर्म ट्रिपल थेरेपी जिसमें दिन में दो बार 250 मिलीग्राम स्पष्टीथ्रोमाइसिन (250 mg of clarithromycin) होता है, रोजाना ओमेपेराज़ोल का 20 मिलीग्राम (20 mg of omeprazole) और दिन में दो बार टिनिडाज़ोल (tinidazole) का 500 मिलीग्राम होता है, यह देखा जाता है कि उपचार पूरा करने का महीना 62 रोगियों में हेलिकोबैक्टर पिलोरी संक्रमण (Helicobacter Pylori infection) सफलतापूर्वक समाप्त हो गया था।
ऐसे मामलों में जहां अल्सर (ulcer) ने एंडोस्कोपी परीक्षण (endoscopy test) करने के लिए खून बहना शुरू कर दिया है, रक्तस्राव को नियंत्रित करने में मदद कर सकता है। उन मरीजों के लिए जो मध्यस्थता लेने या एंडोस्कोपी (endoscopy) करने के बाद भी कोई सकारात्मक परिणाम नहीं दिखाते हैं, सर्जरी की सलाह दी जा सकती है। इन प्रक्रियाओं में योनोटे (vagotmay) (योनि तंत्रिका (vagus nerve) काटने) और अर्द्ध गैस्ट्रोक्टोमी (semi gastrectomy) (पेट के एक हिस्से का आंशिक हटाने) शामिल हैं।

गैस्ट्रिक समस्या (Gastric Problems) के इलाज के लिए कौन पात्र (eligible) है? (इलाज कब किया जाता है?)

सभी गैस्ट्रिक परेशानी के इलाज के लिए पात्र (eligible) हैं। लेकिन आपका डॉक्टर आपकी उम्र और आपकी हालत की गंभीरता के आधार पर खुराक निर्धारित कर सकता है। एच 2 अवरोधक रिसेप्टर दवाएं (H2 blocker receptor drugs) गर्भवती लोगों के लिए भी सुरक्षित हैं।

उपचार के लिए कौन पात्र (eligible) नहीं है?

यह अनुशंसा की जाती है कि एच 2 अवरोधक रिसेप्टर्स (H2 blocker receptors) को गंभीर रूप से एलर्जी वाले लोग किसी भी जीवन-धमकी देने वाली प्रतिक्रियाओं को रोकने के लिए उन्हें लेने से बचना चाहिए।

क्या कोई भी साइड इफेक्ट्स (side effects) हैं?

एच 2 ब्लॉकर्स लेने पर आमतौर पर देखा जाने वाला साइड इफेक्ट (side effects) आमतौर पर हल्का होता है। ये दस्त हैं, सोने में परेशानी, मुंह की सूखापन, कान, कब्ज और सिरदर्द में सनसनी बजाना (diarrhoea, trouble sleeping, dryness of the mouth, ringing sensation in the ears, constipation and headaches)। कुछ गंभीर साइड इफेक्ट्स (side effects) में सांस लेने में श्वास, घरघराहट, आंदोलन, जलती हुई त्वचा और दृष्टि के मुद्दों (trouble breathing, wheezing, agitation, burning skin and vision issues) शामिल हैं।
एंडोस्कोपी (Endoscopy) एक अन्यथा सुरक्षित प्रक्रिया है लेकिन जटिलताओं में रक्तस्राव, संक्रमण, बुखार, पेट दर्द, उल्टी और गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल ट्रैक्ट (gastrointestinal tract) को फाड़ने का मौका हो सकता है।

उपचार के बाद पोस्ट-ट्रीटमेंट गाइडलाइन्स (post-treatment guidelines) क्या हैं?

गैस्ट्रिक मुसीबत के लिए पोस्ट-ट्रीटमेंट दिशानिर्देशों (guidelines) में नियमित रूप से और समय पर आपके डॉक्टर द्वारा निर्धारित दवा लेना शामिल है, यह जांच कर लें कि क्या आप गलती से किसी भी विरोधी भड़काऊ या दर्द हत्यारों (anti-inflammatory or pain killers) को ले रहे हैं क्योंकि इससे दिल की धड़कन की संभावना बढ़ सकती है। आपको नियमित रूप से व्यायाम करने की ज़रूरत है लेकिन उच्च प्रभाव वाली प्रकृति के अभ्यास से बचने के लिए सुनिश्चित करें। अपने आहार पर एक टैब रखने के लिए सुनिश्चित करें- अल्कोहल, चिकनाई या तला हुआ भोजन, मसालेदार भोजन, कार्बोनेटेड पेय, और अन्य नींबू के फल या उनके रस (alcohol, greasy or fried foods, spicy foods, carbonated drinks, and other citrus fruits or their juices) से बचें। शुद्ध पानी और अन्य मौखिक हाइड्रेशन समाधान (oral hydration solutions) पीने से हर समय अपने आप को हाइड्रेटेड रखें।

ठीक होने में कितना समय लगता है?

आपके मामले की गंभीरता के आधार पर आपके उपचार की वसूली अवधि 1 सप्ताह से 4 सप्ताह के बीच कुछ हो सकती है, अधिकतम। यदि आपकी गैस्ट्रिक समस्या (gastric problem ) मुख्य रूप से अपचन के कारण होती है तो आप एक दिन में भी बेहतर हो सकते हैं बशर्ते आप समय पर आवश्यक दवा लें।

भारत में इलाज की कीमत क्या है?

गैस्ट्रिक मुसीबत (gastric trouble) के इलाज के लिए चिकित्सक द्वारा निर्धारित दवा का एक पत्ता, 50 रुपये से कम के रूप में कम से कम रु। 700. एंडोस्कोपी परीक्षण (endoscopy test) की कीमत आपको रु औसतन 1500 और बायोप्सी परीक्षण (biopsy test) के अतिरिक्त 250-500 रुपये खर्च हो सकते हैं।

उपचार के परिणाम स्थायी (permanent) हैं?

ऐसे कोई उपचार नहीं हैं जो गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल डिसऑर्डर (gastrointestinal disorder) की समस्या को स्थायी रूप से ठीक कर सकें। खाड़ी में अपनी गैस्ट्रिक परेशानी को रखने का एकमात्र तरीका मसालेदार, चिकनाई और तला हुआ भोजन से बचने, डेयरी खाद्य पदार्थों और चीनी में समृद्ध लोगों से बचने का एकमात्र तरीका है। भोजन में छोटे से खाएं और निगलने से पहले उन्हें अच्छी तरह से चबाएं। लंबे समय तक खाली पेट पर न रहें।

उपचार के विकल्प (alternatives) क्या हैं?

गैस्ट्रिक परेशानी (gastric trouble) के वैकल्पिक (alternative) उपचार में कुछ घरेलू उपचार शामिल हैं जो आपके रसोईघर में आसानी से उपलब्ध हैं। ये हल्दी हैं (वांछित परिणाम प्राप्त करने के लिए हर रोज दूध के साथ हल्दी मिश्रित (turmeric mixed) होते हैं), आलू के रस (आलू का रस प्री-भोजन तीन बार पेट गैस की आपकी समस्या का इलाज करने के लिए होता है), अदरक (अदरक गैस्ट्रिक समस्या के इलाज के लिए अच्छा है अपचन), बेकिंग सोडा (यह एक प्रभावी एंटीसिड (effective antacid) के रूप में काम करता है और जब आप इसे खाली पेट पर पानी से मिश्रित करते हैं तो तत्काल राहत देता है), सेब साइडर सिरका, दालचीनी, इलायची, प्याज और चारकोल (apple cider vinegar, cinnamon, cardamom, onion and charcoal) (आपके भोजन से पहले और बाद में चारकोल टैबलेट (charcoal tablet) रखना जो अम्लता और गैस (acidity and gas) के मुद्दों को कम करने में काफी मदद करेगा)।
गैसकी समस्या हमेशा पेट से जुड़ी नहीं होती। दूसरी बीमारी के कारण भी यह समस्या मरीज को हो सकती है, पर वह उसे गैस ही समझता है। पेप्टिक अल्सर, गॉल ब्लाडर स्टोन, भोजन की थैली में कैंसर, पैंक्रियाज की बीमारी, आंत की बीमारी, हार्ट और न्यूरोलॉजिकल गड़बड़ी के कारण भी ऐसी समस्या हो सकती है। यदि तकलीफ छह सप्ताह से अधिक है तो उसकी जांच और विशेषज्ञ डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए। जिससे पता चल जाए कि पेट की बीमारी है या फिर कोई अन्य। इसके अलावा भूख की कमी, वजन घटना, उल्टी, बुखार, शौच का रंग काला या लाल हो तो तुरंत जांच करा लेनी चाहिए। यह गंभीर बीमारी के लक्षण हो सकते हैं। इसलिए इसे नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। यह कहना है वरीय पेट रोग विशेषज्ञ डॉ. मनोज कुमार का। वे शनिवार को दैनिक भास्कर की हेल्थ काउंसिलिंग में पाठकों को सलाह दे रहे थे।

डॉ. मनोज ने कहा कि किसी भी बीमारी को पेट की बीमारी नहीं समझना चाहिए। इसके अलावा खुद से इलाज भी जोखिम भरा होता है। जानकारी के अभाव में खुद से दवा खरीद कर खाते रहते हैं। ऐसा लंबे समय तक नहीं करना चाहिए। पेट की कोई बीमारी यदि छह सप्ताह तक खत्म नहीं हो रही है तो डॉक्टर से अवश्य दिखा लेना चाहिए। दवा से यदि राहत नहीं मिलती है तो कुछ स्पेशलाइज्ड जांच करानी पड़ती है। जैसे इंडोस्कोपी या फिर कोलोनोस्कोपी। वैसे अधिकांश लोग पेट में गैस होने की शिकायत करते हैं। पर जांच से अधिकांश मामलों में अन्य बीमारी की जानकारी मिलती है। समय पर बीमारी की पहचान हो जाए तो इलाज संभव है। यदि बीमारी जड़ से खत्म नहीं हो सकती है तो उसे नियंत्रित किया जा सकता है।

इन्होंने ने भी किया फोन : राज(महेंद्रू), अनिल कुमार (फतुहा), निर्मला देवी (दीघा), अशोक कुमार सिंह (कंकड़बाग), सुशील त्रिपाठी (पटना), विनय कुमार (पटना), भगवान चरण (आरा), कौशल कुमार (हाजीपुर), राहुल राज (मुजफ्फरपुर)।

{पेट में दर्द रहता है? राजेश तिवारी, मसौढ़ी

- कीड़ा मारने की दवा लीजिए। दर्द से आराम मिल जाएगा।

{छह साल की बच्ची के पेट में दर्द रहता है? दीपा, फुलवारीशरीफ

- फिलहाल पेंटासीड-20 दस दिन तक दीजिए। आराम मिले तो इसे एक महीने तक जारी रखें। भूख लगे या नहीं उसे समय पर खाना दें। दवा से आराम नहीं मिले तो डॉक्टर से दिखा लें।

{पेट साफ नहीं होता है? मनोज कुमार, बख्तियारपुर

- भोजन में चना, हरी सब्जी को शामिल कीजिए। रात में इसबगोल की भूसी दो चम्मच लें। सुबह टहलिए इसके बावजूद परेशानी रहे तो डॉक्टर से दिखा लें।

{नाभी के नीचे दर्द रहता है? रामप्रकाश, पटना

- खाली पेट में दवा पैन-40 टैबलेट एक महीने तक लें। यदि दवा छोड़ने पर दर्द रहे तो डॉक्टर से दिखाना पड़ेगा।

{खाना खाने के बाद पेट में दर्द होता है? दीपक, मसौढ़ी

- कीड़ा मारने की दवा नो वोर्म-400 एमजी एक बार लें। खाली पेट में एक महीने तक रैजो-20 एमजी दवा ले सकते हैं। इसके बावजूद भी परेशानी रहे तो डॉक्टर से मिलें।

{नानाजी को गैस परेशान करती है। पेट भी फूल जाता है? दीपक कुमार, फतुहा

- सिर्फ चावल खाने से पेट फूलता है तो चावल से परहेज करना होगा। कुछ लोगों को कई तरह के भोजन से एलर्जी के कारण भी ऐसा होता है। रात में दो चम्मच इसबगोल की भूसी दीजिए। भोजन में चना और हरी सब्जी शामिल करें। व्यायाम या फिर टहलने की जरूरत है।

डॉ. मनोज कुमार

Monday 7 October 2019

Shadbindu Tel in Hindi | षडबिंदु तेल के फायदे ,गुण ,उपयोग और नुकसान

षडबिन्दु तेल (Shadbindu Tel) के फायदे एवं बनाने की विधि

षडबिन्दु तेल (Shadbindu Tel) के फायदे एवं
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षडबिंदु तेल के फायदे ,गुण ,उपयोग और नुकसान 
 षडबिंदु तेल : Shadbindu Tel in Hindi. नस्य के रूप में प्रयोग किये जाने वाले एक गुणकारी आयुर्वेदिक योग 'षडबिन्दु

षडबिंदु तेल के फायदे ,गुण ,उपयोग और नुकसान

षडबिन्दु तेल (Shadbindu Tel in Hindi)


षडबिंदु तेल के कम्पोजीशन की बात करें तो या तिल तेल के बेस पर बना आयुर्वेदिक तेल है जिसे कई तरह की जड़ी-बूटियाँ मिलाकर पकाया जाता है. इसमें काला तिल तेल के अलावा बकरी का दूध, भृंगराज का जूस प्रत्येक चार भाग, एरंड मूल, तगर, सौंफ़, जीवंती, रास्ना, दालचीनी, विडंग, मुलेठी, सोंठ और सेंधा नमक प्रत्येक एक भाग के मिश्रण से बनाया जाता है

षडबिंदु तेल बनाने की विधि यह है कि तिल तेल, बकरी का दूध और भृंगराज के रस को मिक्स कर लोहे की कड़ाही में डालकर आंच पर चढ़ा दें, और बाकि दूसरी जड़ी-बूटियों को पिस कर पेस्ट बनाकर मिला लेना है. धीमी आंच पर तेल पकाया जाता है, जब सिर्फ तेल बच जाये तो ठण्डा होने पर छान कर रख लिया जाता है

षडबिंदु तेल के गुण - अगर इसके गुणों की बात करें तो यह एंटी इंफ्लेमेटरी या सुजन दूर करने वाला, एंटी वायरल और एंटी बैक्टीरियल गुणों से भरपूर होता है

नस्य के रूप में प्रयोग किये जाने वाले एक गुणकारी आयुर्वेदिक योग "षडबिन्दु तेल" का परिचय इस आर्टिकल में प्रस्तुत किया जा रहा है जिसका उपयोग कुछ व्याधियों को नष्ट कर शरीर व् स्वास्थ्य की रक्षा करने में बहुत गुणकारी सिद्ध होता है.

षडबिन्दु तेल के घटक द्रव्य (ingredients of shadbindu oil ) - अरंडी की जड़, तगर , सोया, जीवन्ति (डोडी ), रास्ना, सेंधानमक, भांगरा, बायबिडंग, मुलहठी और सौंठ - सब द्रव्य समान मात्रा में . भांगरे का रस , काले तिल का तेल और इसके बराबर वज़न में बकरी का दूध.
षडबिन्दु तेल निर्माण विधि (shadbindu oil preparation method ) - सब द्रव्यों को भांगरे के रस में पीस कर कल्क (लुगदी) बना लें. इस कल्क के वज़न से चार गुना काले तिल का तेल, इतनी ही मात्रा में बकरी का दूध और तेल से चार गुनी मात्रा में भांगरे का रस - इन सबको मिलाकर यथा विधि तेल को सिद्ध करें यानी तब तक उबालें जब सिर्फ तेल ही बचे. तेल सिद्ध करके उतार लें और ठंडा होने पर छान कर बोतलों में भर लें.
षडबिन्दु तेल मात्रा और प्रयोग विधि ( shadbindu oil quantity , dosage and application uses ) - इस तेल का उपयोग नाक में २-२ बून्द टपका कर नस्य के रूप में किया जाता है. इसकी प्रयोग विधि इस प्रकार है - पलंग पर चित्त लेटकर गर्दन पलंग से बाहर की तरफ रखकर लटका दें ताकि नाक सीधी छत की तरफ हो जाए. अब ड्रॉपर में षडबिन्दु तेल भरकर नाक के एक नासापुट में २-३ बून्द कोई भी व्यक्ति टपका दे. जैसे ही तेल की बून्द नाक में गिरे वैसे ही दूसरी तरफ का नासापुट अँगुलियों से दबा कर, २-३ बार, जोर से सांस खींचे ताकि तेल कंठ में न जाकर ऊपर की तरफ निकल जाए. इसी प्रकार दूसरी तरफ के नासापुट में २-३ बूंदें टपका कर दूसरे नासापुट को दबा कर, २-३ बार , जोर से सांस खींचें . इसके बाद २-३ मिनिट तक इसी स्थिति में लेटे रहें फिर उठ जाएँ. यह प्रयोग रात को सोते समय करें.

षडबिन्दु तेल के लाभ व् फायदे (Advantages and health benefits of shadbindu oil ) - षडबिन्दु तेल से नस्य लेने के कई फायदे हैं. इससे सर व् मस्तिष्क में तरावट होती है, खुश्की व् गर्मी दूर होती है. सर में भारीपन, सिरदर्द, बाल झड़ना व् सफ़ेद होना, सर्दी-जुकाम, नाक के अंदर सूजन होना आदि शिकायतें दूर होती हैं और शिरोरोग नष्ट होते हैं. यह तेल बिना किसी रोग के, स्वस्थ अवस्था में भी, सप्ताह में या मास में एक बार दोनों तरफ के नासापुटों (नथुनों ) में टपकाते रहने से ये शिकायतें पैदा ही नहीं होती. षडबिन्दु तेल बना बनाया इसी नाम से बाज़ार में मिलता है.
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Sunday 6 October 2019

शुगर में परहेज | लक्षण व मधुमेह रोगियों के लिए घरेलू नुस्खों | Sugar Me Kya Khaye | शुगर की रामबाण औषधी, शुगर की दवा घर पर बनायें

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शुगर (डायबिटीज) में क्या खाना चाहिए


दुनिया भर में सबसे ज़्यादा लोग अगर किसी बीमारी से पीड़ित हैं, तो वह है शुगर डायबिटीज़. यह एक भयंकर महामारी के रूप में दुनिया भर में फैल रही है. पूरी दुनिया में शुगर डायबिटीज से लगभग 415 मिलियन लोग प्रभावित हैं.
आपको यह जानकर बड़ी हैरानी होगी कि अकेले भारत में ही इतनी बड़ी आबादी के आधे लोग यहाँ शुगर के मरीज़ हैं. मतलब की दुनिया भर में जितने मरीज़ हैं उसकी आधी आबादी हमारे भारत में पाई जाती है.
हमारी बिगड़ती जीवनशैली के कारण हमारा शरीर कई बीमारियों का घर बन गया है। इन्हीं बीमारियों में से एक है डाइबिटीज़ यानी मधुमेह। डाइबिटीज़ भले ही एक सामान्य बीमारी हो, लेकिन एक बार किसी को हो जाए, तो ज़िंदगीभर उसका साथ नहीं छोड़ती। किसी समय में यह बीमारी सिर्फ 50 साल से ऊपर के लोगों को होती थी, लेकिन आज हर कोई इससे ग्रस्त है। यहां हम आपको बता दें कि अगर मरीज़ अपनी जीवनशैली और खानपान का ख्याल रखे तो डाइबिटीज़ को संतुलित रखा जा सकता है।
  1. टाइप 1 – यह एक ऑटोइम्यून डिसऑर्डर है, इसमें बीटा कोशिकाएं इंसुलिन नहीं बना पाती हैं। इस मधुमेह में मरीज़ को इंसुलिन के इंजेक्शन दिए जाते हैं, ताकि शरीर में इंसुलिन की मात्रा सही तरीक़े से बनी रहे। यह डायबिटीज़ बच्चों और युवाओं को होने की आशंका ज़्यादा होती है।
  1. टाइप 2 – इसमें शरीर में इंसुलिन की मात्रा कम हो जाती है या फिर शरीर सही तरीके से इंसुलिन का इस्तेमाल नहीं कर पाता।
  1. गर्भावधि मधुमेह (gestational diabetes) – यह मधुमेह गर्भावस्था के दौरान होता है, जब खून में शुगर की मात्रा बढ़ जाती है। इस दौरान, गर्भवती महिलाओं को टाइप 2 डायबिटीज़ होने का खतरा ज़्यादा रहता है।
हर किसी को मधुमेह के कुछ लक्षणों का पता होना जरूरी है। इसके कई ऐसे आम से दिखने वाले लक्षण होते हैं, जिन पर अगर आप समय रहते ध्यान देते हैं, तो इस बीमारी को नियंत्रित किया जा सकता है। नीचे हम ऐसे ही कुछ शुगर के लक्षण आपको बता रहे हैं।
  1. बार-बार पेशाब लगना।
  2. लगातार शरीर में दर्द की शिकायत होना।
  3. बार-बार त्वचा और प्राइवेट पार्ट्स में संक्रमण होना या कैविटी होना।
  4. घाव का जल्दी न भरना।
  5. गला सूखना या बार-बार प्यास लगना।
  6. आंखों की रोशनी कमज़ोर होना।
  7. वज़न का अचानक से ज़्यादा बढ़ना या कम होना।
  8. लगातार थकान या कमज़ोरी महसूस होना।
  9. ज़रूरत से ज़्यादा भूख लगना।
  10. व्यवहार में चिड़चिड़ापन होना।
इससे पहले कि आप मधुमेह के इलाज के बारे में जानें, आपका शुगर होने के कारणों के बारे में जानना ज़रूरी है।
  • अगर आपके परिवार में किसी को डायबिटीज़ है, तो आपको भी डायबिटीज़ होने का ख़तरा हो सकता है।
  • ज़्यादा तला या बाहर का खाना खाने से बढ़ता हुआ वज़न भी डायबिटीज़ का कारण है।
  • व्यायाम या कोई शारीरिक श्रम ना करना।
  • ज़्यादा मीठा खाना।
  • अगर कोई ह्रदय संबंधी बीमारी है, तो डायबिटीज़ हो सकती है।
  • अगर गर्भावस्था के दौरान डायबिटीज़ हुई हो या शिशु का वज़न 9 पौंड से ज्यादा हो तो आगे चलकर टाइप 2 डायबिटीज़ होने की आशंका बढ़ जाती है।
  • बढ़ती उम्र से भी डायबिटीज़ हो सकती है।
  1. इंसुलिन – कई टाइप-1 और टाइप-2 डायबिटीज़ के मरीज़ इंसुलिन के इंजेक्शन का उपयोग करते हैं। इसके अलावा डॉक्टर इंसुलिन पंप की भी सलाह देते हैं।

  1. सही खान-पान – मधुमेह के मरीज़ों को अपने खान-पान का ख़ास ख़्याल रखना चाहिए। इसलिए, डॉक्टर डायबिटीज़ के लिए एक विशेष आहार चार्ट बनाते हैं और उसी के अनुरुप खान-पान की सलाह देते हैं। खाने में हरी पत्तेदार सब्ज़ियां, गाजर, टमाटर, संतरा, केला व अंगूर खा सकते हैं। इसके अलावा अंडा, मछली, चीज़ और दही का भी सेवन करने की सलाह दी जाती है।
  1. व्यायाम – खाने-पीने के अलावा डॉक्टर व्यायाम और योगासन करने की भी राय देते हैं। फिज़िकल एक्टिविटी करने से ब्लड ग्लूकोज़ लेवल संतुलित रहता है और आपका शरीर स्वस्थ रहता है। डॉक्टर, डायबिटीज़ के मरीज़ों को चलने, सुबह की सैर और हल्का-फ़ुल्का व्यायाम करने की राय देते हैं। यह डायबिटीज के इलाज के सबसे आसान तरीके हैं। 
  1. दवाइयां – डायबिटीज़ के मरीज़ों को दवाइयां की भी सलाह दी आती है। डॉक्टर, मरीज़ की बीमारी के अनुसार ही दवाई देते हैं।