Showing posts with label होम्योपैथी. Show all posts
Showing posts with label होम्योपैथी. Show all posts

Sunday, 23 August 2020

Dysentery Problem : पेचिश या आंव से हैं परेशान, तो ठीक करेंगे ये प्राकृतिक उपाय

 

एक बार शरीर में पहुंच जाने के बाद शिजैला डिसेन्ट्री वहां हाइड्रोक्लोरिक एसिड के प्रभाव से बचा रहता है, छोटी आंत को पार कर अंत में बड़ी आंत में पहुंचकर बस जाता है। कोलन (बड़ी आंत) के नाजुक, उपसंरिक स्तर से चिपके रहकर यह बैक्टीरिया विभाजन और पुनः विभाजन द्वारा अपनी वंशवृद्धि कर देता है और शीघ्र ही इसकी संख्या में बहुत अधिक वृद्धि हो जाती है।

शिजैला डिसेन्ट्री बड़ी आंत में अनेक विषैले रसायन उत्पन्न करता है। इन विषैले रसायनों में से एक बहुत अधिक सूजन उत्पन्न करता है और अन्ततः आंत की पूरी लंबाई में असंख्य घाव उत्पन्न कर देता है। अांत की दीवार की रक्तवाहिकाएं क्षतिग्रस्त हो जाती हैं और उनमें से रक्त निकलने लगता है। शिजैला डिसेन्ट्री द्वारा अन्य विषैला पदार्थ सामान्य आंत कोशिकाओं से चिपक जाता है और उन्हें बहुत अधिक मात्रा में पानी और नमक निष्कर्षित करने के लिए मजबूर कर देता है। इन सब क्रियाओं के फलस्वरूप बैसिलरी पेचिश के विशिष्ट लक्षण, पेट में भयंकर जकड़ने वाली पीड़ा तथा खूनी पतले दस्त होने लगते हैं। शरीर से तरल पदार्थ, नमक और रक्त बाहर निकल जाते हैं। परिणामस्वरूप रोगी का रक्तचाप अत्यधिक कम हो सकता है उसे आघात पहुंचता है और उसके गुर्दे काम करना बंद कर सकते हैं। ऐसा भी हो सकता है कि इस पेचिश से पीड़ित होने पर बड़ी आंत के आवरण फट जाएं और उसके सब पदार्थ उदर-गुहा में आ जाएं। यह स्थिति बहुत खतरनाक होती है।
बचाव
इस महामारी से बचने के लिए निम्न सावधानियां बरतनी चाहिए –
मल का उचित विसर्जन : बीमारी से पीड़ित लोगों के मल को गांव से दूर विसर्जित करना चाहिए। मल को किसी गड्ढे में दबा देना चाहिए। बच्चों को इन स्थानों के नजदीक नहीं आने देना चाहिए। बच्चे इस बीमारी का शिकार बहुत जल्दी हो जाते हैं। शौच के बाद हाथों को अच्छी तरह से साबुन से साफ करें। खाना खाने से पहले भी उन्हें साबुन से धो लें। पके हुए भोजन को जितना जल्दी हो सके, उपयोग कर लेना चाहिए। इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि मक्खियां इसके नजदीक न जाएं। जितना संभव हो, खुले बर्तनों, घड़ों, नांद आदि में पीने का पानी नहीं रखना चाहिए। फल तथा सब्जियों को खाने तथा पकाने से पहले अच्छी तरह धो लें। बेहतर होगा कि बीमारियों के फैलने की स्थिति में बाजार में बने खाद्यों का इस्तेमाल कम-से-कम करें। बीमारी के फैलने की अवस्था में उबले हुए पानी का उपयोग अत्यन्त आवश्यक है। गर्मी और बरसात में पेचिश लगभग हर वर्ष फैलती है।
पेचिस का इलाज
होमियोपैथी चिकित्सा पद्धति में ‘सिमिलिमस’ के आधार पर अनेक औषधियां इस घातक बीमारी से रोगियों को रोगमुक्त कराने में कारगर हैं।
मरक्यूरियस कोर :
पेचिशनुमा पाखाना, शौच करते समय पेट में दर्द, शौच के बाद भी बेचैनी एवं पेट में दर्द बने रहना, पाखाना गर्म, खूनी, श्लेष्मायुक्त, बदबूदार, चिकना, पेशाब में एल्मिवुन (सफेदी)। साथ ही गले में भी दर्द एवं सूजन रहती है, खट्टे पदार्थ खाने पर परेशानी बढ़ जाती है, तो उक्त दवा 30 शक्ति में लेनी चाहिए।
कोलोसिंथ : मुंह का स्वाद बहुत कड़वा, जीभ खुरदरी, अत्यधिक भूख, पेट में भयंकर दर्द जिसकी वजह से मरीज दोहरा हो जाता है एवं पेट पर दबाव डालता है, अांतों में दवा उपयोगी रहती है। 30 शक्ति में लेनी चाहिए।
एस्क्लेरियॉस ट्यूर्बोसा :
पेट में भारीपन, खाने के बाद गैस बनना, केटेरहल (श्लेष्मायुक्त) पेचिश, साथ ही मांसपेशियों एवं जोड़ों में दर्द, पाखाने में से सड़े अंडे जैसी बदबू आती है। इन लक्षणों के आधार पर दवा का मूल अर्क 5-5 बूंद सुबह-दोपहर-शाम लेना फायदेमंद रहता है।
एलो :
पेय पदार्थों की इच्छा, खाने के बाद गैस बनना, मलाशय में दर्द, गुदा से खून आना, बवासीर रहना, ठंडे पानी से धोने पर आराम मिलना, पाखाने एवं गैस के खारिज होने में अंतर न कर पाना, पाखाने के साथ अत्यधिक श्लेष्मायुक्त (म्यूकस), गुदा में जलन रहना, खाना खाने-पीने पर फौरन पाखाने की हाजत होना आदि लक्षणों के आधार पर 30 शक्ति में दवा की कुछ खुराक लेनी चाहिए। इसके अलावा अनेक दवाएं लक्षणों की समानता पर दी जा सकती हैं।
कॉल्विकम :
गैस की वजस से पेट फूल जाना, पेट में आवाजें होना, मुंह सूखा हुआ, जीभ, दांत, मसूड़ों में भी दर्द, खाने की महक से ही उल्टी हो जाना, पेट में ठंडक महसूस होना, पाखाना कम मात्रा में, पारदर्शी, जेलीनुमा श्लेष्मायुक्त पाखाने में सफेद-सफेद कण अत्यधिक मात्रा में छितरे हुए, कांच निकलना, सोचने पर परेशानी बढ़ना आदि लक्षणों के आधार पर 30 शक्ति में दवा लेना उपयोगी रहता है।
टाम्बिडियम :
खाना खाने एवं पानी पीने पर परेशानी बढ़ जाना, टट्टी से पहले एवं बाद में अधिक दर्द, पेट के हाचपोकॉट्रियम भाग में दर्द, सुबह उठते ही पतले पाखाने होना, भूरे रंग की खूनी पेचिश दर्द के साथ, गुदा में जलन आदि लक्षण मिलने पर 6 से 30 शक्ति तक दवा लेना हितकर है।
पेचिश आंवयुक्त नई या पुरानी का रामबाण घरेलु इलाज.
पेचिश को आमतिसार और रक्तातिसार के नाम से भी जाना जाता है. इसके रोगी को भूख कम लगती है और दुर्बलता प्रतीत होती है. पेचिश रोग में शुरू शुरू में बार बार थोड़ी थोड़ी मात्रा में दस्त, पेट में ऐंठन की पीड़ा, मल के साथ सफ़ेद चिकना पदार्थ (Mucus) निकलता है, परन्तु धीरे धीरे दस्तों की संख्या बढती जाती है और रक्त भी साथ में आने लग जाता है. दस्त के समय पेट में असहनीय दर्द होता है. पेचिश का मुख्य कारण इलियम के निचले हिस्से व् बड़ी आंत में प्रदाह होता है. पेचिश दो प्रकार की होती है.
दण्डाणुका पेचिश.
अमीबिक पेचिश.
1. दण्डाणुका पेचिश – दण्डाणुका पेचिश में रोगी को बार बार दस्त जाने की इच्छा होती है. दस्त में रक्त का अंश अधिक होता है. कभी कभी ऐसा लगता है मानो केवल रक्त ही रह गया है. दिन में 20 – 30 दस्त तक हो जाते हैं. और कभी कभी ज्वर भी हो जाता है. यह शीघ्र ठीक हो जाती है. इसके लिए होम्योपैथिक की मर्क कोर 30 एक ड्राम गोलियां लेकर दस दस गोली, पांच बार चूसने से शीघ्र ही रोगी ठीक हो जाता है.
2. अमीबिक पेचिश – अमीबिक पेचिश Entamoeba Histolytia नामक कीटाणु से होती है. गंदे खान पान से यह कीटाणु आंतड़ियों में चला जाता है और वहां प्रदाह पैदा करता है. इसमें दस्त लगते हैं. 24 घंटे में 2 – 4 से लेकर 8 – 10 दस्त आ जाते हैं, दस्त मात्रा में बड़ा, ढीला सा, और तुरंत मल त्याग की इच्छा वाला होता है. दस्त में आंव और रक्त दोनों मिश्रित रहते हैं. रक्त मिश्रित दस्त पतला और ढीला हो जाता है. कुछ में रक्तातिसार (Melaena) का ही लक्षण विशेष होता है और कुछ में कब्ज. दस्तों के अलावा भोजन से अरुचि, आफरा, पेट दर्द या बेचैनी सी रहती है. श्रम करने से थकान, चक्कर आते हैं. इस रोग के कारण श्वांस रोग, पामा (Eczema), यकृत में शोथ (Fatty liver), घाव भी हो सकता है. यह जितना पुरानी होती जाती है उतना इसको दवाओं से ठीक करना कठिन रहता है, लेकिन भोजन और घरेलु चिकित्सा से इसको आसानी से ठीक किया जा सकता है.
आवश्यक सामग्री.
सौंफ – 300 ग्राम.
मिश्री – 300 ग्राम.
पेचिश की घरेलु दवा बनाने की विधि.
सबसे पहले सौंफ के दो बराबर हिस्से कर ले। एक हिस्सा तवे पर भून ले। भुनी हुई सौंफ और बची हुई सोंफ दोनों को लेकर बारीक़ पीस ले और मिश्री (मिश्री को पहले पीस लीजिये) को मिला लें। इस चूर्ण को छ; ग्राम (दो चम्मच) की मात्रा से दिन में चार बार खाएं। ऊपर से दो घुट पानी पी सकते है। आंवयुक्त पेचिश ( मरोड़ देकर थोड़ा-थोड़ा मल तथा आंव आना ) के लिए रामबाण है। सोंफ खाने से बस्ती-शूल या पीड़ा सहित आंव आना मिटता है।
पेचिश का सहायक उपचार
दही- भात(चावल) मिश्री के साथ खाने से आंव-मरोड़ो के दस्तो में आराम आता है।
1. दाना मेथी
मैथी (शुष्क दाना) का साग बनाकर रोजाना खाएं अथवा मैथी दाना का चूर्ण तीन ग्राम दही मिलाकर सेवन करे। आंव की बीमारी में लाभ के अतिरिक्त इससे मूत्र का अधिक आना भी बंद होता है। मैथी के बीजो को डा.पि. बलम ने काड लिवर ऑयल के समान लाभकारी बताया है।

2. चंदरोई (चोलाई) का साग
चंदलिया (चोलाई) का साग (बिना मिर्च या तेल में पका हुआ) लगभग १५० ग्राम प्रतिदिन ११ दिन तक खाने से पुराने से पुराना आंव का रोग जड़ से दूर होता है। गूदे की पथरी में भी चोलाई का साग लाभकारी है। यह साग राजस्थान और मध्य प्रदेश में खूब होता है।
3. छोटी हरड़ तथा पीपर का चूर्ण-
हरड़ छोटी दो बाग़ और पीपर छोटी एक भाग दोनों का बारीक़ चूर्ण कर ले। एक से डेढ़ ग्राम चूर्ण गर्म पानी से दोनों समय भोजन के बाद आवश्यकता अनुसार तीन दिन एक सप्ताह तक नियमित ले। इससे आंव और शुलसहित दस्त शांत होते है। यह अमीबिक पेचिश में विशेष लाभप्रद है।

सबसे असरदार याददाश्त बढ़ाने की होम्योपैथिक दवा | homeopathic medicine for memory & concentration

 याददाश्त का कमजोर होना-


एनाकार्डियम 200, 1M- किसी बात का स्मरण न रहना, विद्यार्थी को पढ़ी हुई बातें याद न रहना या उसे भूल जाना याददाश्त की कमजोरी की सूचक है । रोगी को प्रत्येक बातें बीती घटनायें सी लगती हैं । भूली-भूली बातें याद-सी रहती हैं । अचानक भूलने की प्रवृत्ति होती है और उसे कुछ भी याद नहीं रहता है । रोगी को यह भी ख्याल होता है कि उसकी दो इच्छायें है जिसमें से एक इच्छा उसे कार्य करने के लिये उकसाती है तो दूसरी इच्छा उसे कार्य करने से रोकती है । रोगी सबको सन्देह की निगाहों से देखता है और उसे किसी पर विश्वास नहीं रहता । इतना ही नहीं, उसे स्वयं अपने आप पर भी विश्वास नहीं रहता । चलते जाता है, एकदम घबरा-सा जाता है। इसका रोगी परिहास की बातों में अत्यन्त गम्भीर हो जाता है और गम्भीर विषय में परिहास करने लगता है ।

पढ़ाई-लिखाई में मन न लगना-
आइरिस वसिंकॉलर 200, 1M- ऐसे विद्यार्थी या व्यक्ति जिनका मन पढ़ाई-लिखाई में नहीं लगता हो उन्हें इस दवा की एक-दो मात्रा देते ही उनका मन पढ़ाई-लिखाई में लगने लगता है। ऐसे व्यक्तियों को लक्षणानुसार हैमामेलिस भी दे सकते हैं ।

भूलने की प्रवृत्ति, विद्यार्थियों की स्मरण-शक्ति की दवा-
इथूजा 200 – ऐसे विद्यार्थी जिन्हें घर पर तो सब कुछ याद रहता है परन्तु परीक्षा-केन्द्र पर जाते ही वे सब भूल जाते हैं । ऐसे विद्यार्थियों को परीक्षा केन्द्र में जाने से पूर्व इसकी एक मात्रा ले लेनी चाहिये । यह परीक्षा के दिनों की थकावट और ध्यान केन्द्रित न कर सकने की स्थिति को एक उत्तम औषधि है ।

गलत शब्दों का उच्चारण करना व लिखना-
लाइकोपोडियम 200, 1M – ऐसे विद्यार्थी जो गलत शब्द का उच्चारण करते हों और लिखते हों उन्हें इस दवा की एक मात्रा देकर परिणाम की प्रतीक्षा करनी चाहिये ।

हकलाना या भूलना-
कैनाबिस इंडिका 200- ऐसे रोगी या बच्चे जो बोलते-बोलते यह भूल जाते हैं वे क्या बोल रहे थे, उन्हें इस दवा की एक मात्रा दे देनी चाहिये, बहुत लाभ होगा । इसी प्रकार, कुछ बच्चे हकलाने लगते हैं । वे इसलिये हकलाते हैं कि वे जो बोलना चाहते हैं वह उनके दिमाग में जल्दी से नहीं आ पाता और इसी वजह से उन्हें दिमाग पर अत्यधिक जोर लगाना पड़ता है और वे बोलते-बोलते अटक जाते हैं । ऐसी स्थिति में भी इस दवा की एक मात्रा देकर देखना चाहिये । कुछ बच्चों में यह दवा काम कर जाती है परन्तु कुछ बच्चों में नहीं करती, ऐसे बच्चों को स्ट्रामोनियम 200 देनी चाहिये तथा बीच-बीच में काली फॉस 12x देते रहनी चाहिये ।

मानसिक श्रम से थकान-
आर्जेण्टम नाइट्रिकम 200- ऐसे व्यक्ति या विद्यार्थी जो दिमाग से अधिक कार्य लेते हैं जैसे- क्लर्क, व्यापारी, अध्यापक, विद्यार्थी आदि- उनमें मानसिक उत्तेजना व तनाव बढ़ जाने की वजह से उनको मानसिक थकान होने लगती है । ऐसे व्यक्तियों को इस दवा की एक-दो मात्रा दे देने से उनकी यह परेशानी दूर हो जाती है और वे मानसिक शान्ति महसूस करते हैं ।

दिमाग से कार्य करने वालों के सिर में दर्द-
पिक्रिक एसिड 30, 200 – अध्यापक, विद्यार्थियों या अन्य व्यक्तियों को, जिन्हें दिमाग को एकाग्र करके ज्यादातर काम करना पड़ता है, उन्हें अकसर सिर-दर्द हो जाता है । ऐसे व्यक्तियों को यह दवा देनी चाहिये ।

अत्यधिक अध्ययन-प्रियता-
कैरिका पेपेया 200- ऐसे व्यक्ति जो बिना थके बहुत देर तक अध्ययन-कायों में लगे रहते हैं, ऐसे व्यक्तियों
का मन अध्ययन में लगा रहने से घर के कई काम-काजों में अनावश्यक व्यवधान उत्पन्न हो जाता है । ऐसे व्यक्तियों को यदि इस दवा की एक-दो मात्रा दी जायें तो उनकी यह प्रवृत्ति बदली जा सकती है। कुछ चिकित्सक इसकी 3x या 12x शक्ति के पक्षपाती हैं ।

लिखते-लिखते अक्षरों को छोड़ देना-
बेंजोइकम ऐसिड 30, 200- ऐसे विद्यार्थी जो लिखते-लिखते कुछ अक्षरों को छोड़ जाते हैं और शब्द पूरा नहीं लिख पाते, उन्हें इस दवा की कुछ मात्रायें देने से उनकी यह आदत ठीक हो जाती है ।

परीक्षा का भय-
आर्जेण्टम नाइट्रिकम 30- ऐसे छात्र या छात्रायें जिन्हें, जैसे-जैसे परीक्षा पास आने लगती हैं, डर-सा सताने लगता है, उन्हें इस दवा की कुछ मात्रायें दे देनी चाहिये । इससे उनका यह डर जाता रहेगा ।
बच्चों या बड़ों का वस्तुओं को गलत नामों से पुकारना-डायस्कोरिया विल्लोसा 30, 200- ऐसे बच्चे या बूढ़े व्यक्ति जो वस्तुओं को गलत नाम से पुकारते हैं उन्हें यह दवा देने से वे सही नाम से पुकारने लगते हैं ।

गलत लिखना-
कल्केरिया कार्ब 200, 1M- कई व्यक्ति गलत लिखते हैं (उदाहरणार्थ- वे राम की जगह श्याम लिखते हैं) और लिखते समय उन्हें अपनी गलती का अहसास तक भी नहीं होता है। ऐसे रोगी को इस दवा का रोगी समझना चाहिये । –

विद्यार्थियों को परीक्षा के दिनों में अधिक नीद आना-
स्क्रॉफुलेरिया नोडोसा Q- ऐसे विद्यार्थियों को, जिन्हें परीक्षा के समय अधिक नींद आती हो और जागने की आवश्यकता हो तो उन्हें नींद भगाने हेतु दिन में दो-तीन बार इस दवा की 10-10 बूंद देनी चाहिये । इस दवा को 30 शक्ति में भी दिया जा सकता है । लेकिन इस दवा के अधिक प्रयोग से नोंद जैसी प्राकृतिक क्रिया में व्यर्थ ही व्यवधान पड़ता है अतः इस दवा का अधिक प्रयोग या बिना सोचे-विचारे प्रयोग नहीं करना चाहिये ।

दिमाग की जड़ता के लिये-
मैग्नीशिया फॉस 3x, 30-डॉ० क्लार्क का कथन है कि ऐसे विद्यार्थी या व्यक्ति जिनकी विचारने या सोचने-समझने की शक्ति कमजोर हो, जड़ता आ जाये तो ऐसे व्यक्तियों को यह दवा ले लेनी चाहिये, इससे उनकी जड़ता दूर हो जायेगी ।

Sunday, 6 October 2019

Symphytum | हड्डियों या घुटनों से कट-कट की आवाज आने का होम्योपैथिक दवा | जोड़ व हड्डी रोग


Symphytum एक प्लांट किंगडम की होम्योपैथिक दवा है। Symphytum हड्डियों को जड़ने वाली दवाई है, यह दवाई हड्डियों पर सीधा असर करती है। हमारी हड्डी विभिन्न रेसों से मिलकर बनी होती है, जब भी हमे हड्डी में चोट लगती है तो ये रेसे अलग हो जाते है। यह दवाई उन रेसो को दुबारा जोड़ने में मदद करती है। Ligament के फट जाने पर भी यह दवाई उसे ठीक करती है। यह दवाई Tendon को भी जोड़ती है। Symphytum दवाई जोड़ों पर असर करती है और हड्डी को जोड़े रखती है। Symphytum मदर टिंचर में छोटे-छोटे क्रिस्टल्स होते है जो दिखते नहीं है। जब हम उसे पीते है तो यह क्रिस्टल अल्सर पर भी जाकर असर करती है और छालों को ठीक करती है। जोड़ों में होने वाले कट-कट की आवाज को भी ठीक करती है।

कौन-कौन से लक्षण में Symphytum दवाई लेना है ?

  1. आँख में कुछ चला जाए तो आँख लाल हो जाती है, ऐसे में यह दवा असरदार है।
  2. एक्सीडेंट के बाद अगर जॉइंट्स में सुजन आ जाती है तो यह दवाई बहुत ही लाभदायक है।
  3. सूजन के साथ होने वाले दर्द को भी यह दवाई कम करती है।
  4. टूटी हुई हड्डियों को जोड़ने का काम करती है।
  5. हड्डीओं से कट-कट की आवाज आने पर

Symphytum दवाई लेने की विधि विभिन्न समस्याओं में

अगर आपका एक्सीडेंट हो गया है और आपको प्लास्टर लग गया है तो आप Symphytum मदर टिंचर में ले, इससे हड्डियां जल्दी जुड़ जाएँगी। इसकी 20-20 बून्द आधे कप पानी में डाल कर दिन में पांच बार पिए । यह दवाई एक से दो महीने तक ले, इससे सूजन और दर्द भी पूरी तरह ठीक हो जाये।

अगर आपकी उम्र अधिक है और हड्डियां कमजोर होने के कारण पैर हाथ टूट जाता है तो डॉक्टर के पास जाकर प्लास्टर जरूर कराये पर साथ ही Symphytum भी ले, इससे हड्डियां जल्दी जुड़ेंगी। Symphytum मदर टिंचर की 30 बून्द आधे कप पानी में डाल कर दिन में पांच बार दे। यह दवाई लगभग दो महीने तक लेनी है।
Ligament या Tendon के फट जाने पर यह दवाई 20 बून्द आधे कप पानी में डाल कर दिन में तीन बार ले। इसके साथ ही Ruta मदर टिंचर भी लेना है दिन तीन बार आधे कप पानी में 20 बून्द डाल कर।
अगर आपके घुटनो से कट-कट की आवाज आती है और उठने बैठने में दर्द होता है तो भी यह दवाई ले सकते है आप। इसमें भी 20 बून्द आधे कप पानी में डाल कर दिन में तीन बार लेनी है।
अगर आपको अल्सर की समस्या है या पेट में, मुँह में छाले है तो यह दवाई 20 बून्द आधे कप पानी में डाल कर दिन में तीन बार ले। इसे आपको तीन से चार महीने तक लेना है।
अगर आपके आँख में कुछ चला गया है जिससे आँख लाल हो गई है तो Symphytum Officinale 30 Ch में इस्तेमाल करना है। इसकी दो-दो बून्द दिन में तीन बार लेनी है। दो दिन में इससे आँख का लालपन ठीक हो जायेगा और आँख में कुछ चला गया है तो उसकी वजह से जो दिक्कत आई है वो भी ठीक हो जाएगी। अगर आँख पर चोट लग गई है और नीलापन आ गया है तब भी यह दवाई बहुत ही लाभदायक है।
नोट :- यह दवाई SBL, WSI या डॉ. रेकवेग की ले, आपको यह दवाई किसी भी होम्योपैथी दुकान पर मिल जाएगी।

ऐनाकार्डियम-ओरिएंटल | Anacardium oriental | ऐनाकार्डियम ( Anacardium ) का गुण, लक्षण

Anacardium Orientale in Hindi | ऐनाकार्डियम ओरियेनटेल (Anacardium oriental) | Buy Anacardium Orientale Homeopathic Remedy

Anacardium


लक्षण तथा मुख्य-रोग प्रकृति

(1) स्मरण-शक्ति का एकाएक लोप होना
(2) रोगी समझता है कि शरीर तथा मन अलग-अलग हैं तथा उसके दो इच्छा शक्तियां हैं।
(3) यह अनुभूति कि सब अवास्तविक है
(4) अन्य प्रकार के भ्रम-सब पर सन्देह, कोई पीछा कर रहा हैं आदि भ्रांतियां
(5) बिना हंसी की बात पर हंस देना, हंसी की बात पर संजीदा हो जाना
(6) खाने के बाद पेट-दर्द आदि में आराम में ऐनाकार्डियम तथा नक्स की तुलना
(7) मानसिक दुर्बलता – परीक्षा से घबराहट
(8) अनिद्रा – नींद न आना

लक्षणों में कमी

(i) खाने के बाद रोग में कमी
(ii) गर्म पानी से स्नान करने से रोग में कमी

लक्षणों में वृद्धि

(i) क्रोध से रोग में वृद्धि
(ii) भय से रोग में वृद्धि
(iii) ठंड से रोग में वृद्धि
(iv) खुली हवा से रोग में वृद्धि
(1) स्मरण-शक्ति का एकाएक लोप हो जाना – ऐनाकार्डियम औषधि का स्मरण शक्ति पर प्रभाव पड़ता है। रोगिणी कभी पहचानती है कि यह उसका बच्चा है, कभी भूल जाती है और अपने बच्चे को पहचानती नहीं। होम्योपैथी के संपूर्ण मैटीरिया मैडिका में स्मृति-लोप के संबंध में ऐनाकार्डियम औषधि के समान दूसरी शायद ही कोई औषधि हो। जब स्मृति-लोप का लक्षण इतना प्रबल हो तब यह औषधि स्मृति को तो ठीक कर ही देती है, रोगी के अन्य लक्षणों को भी दूर कर देती है। स्मृति-लोप इतना हो जाता है कि वह अपने बच्चें को नहीं, अपने पिता को भी भूल जाती है। कहती है: यह बच्चा उसका बच्चा नहीं; यह पति उसका पति नहीं।
(2) रोगी समझता है कि शरीर तथा मन अलग-अलग हैं तथा उसके दो इच्छा-शक्तियां (Two Wills) हैं – स्वस्थ-मनुष्य को शरीर तथा मन के अलग-अलग होने की अनुभूति नहीं बनी रहती, परन्तु इस रोगी को हर समय ख्याल आता रहता है कि ये दोनों अलग-अलग हैं। शरीर तथा मन के अलग-अलग होने की ही उसे अनुभूति नहीं होती, उसे यह भी प्रतीत होता है कि उसके भीतर मन के भी दो भाग हैं, उसकी दो ‘इच्छा-शक्तियां (Wilis) हैं। उनमें से एक इच्छा-शक्ति उसे जो कुछ करने को कहती है, दूसरी उसे करने से रोकती है। वह निश्चय नहीं कर सकता कि क्या करें। उसके भीतर से उसे एक आवाज आती है-यह करो; दूसरी आवाज आती हैं-यह न करो। उसकी इच्छा है कि दूसरे को मार, दूसरे के साथ अन्याय करे, परन्तु उसे दूसरी आवाज ही अपने भीतर से सुनाई देती है कि ऐसा न करे। क्या करे, क्या न करे, इसका विवाद उसके भीतर चलता रहता है। वैसे तो ऐसा विवाद सब में चला करता है, भला आदमी अपनी शुभ-इच्छाओं के बल पर बुरी-इच्छा को दबा देता है, बुरा आदमी कानून के डर से इन बुरी इच्छाओं को दबा देता है। परन्तु जब मन इतना बेकाबू हो जाय कि वह बुरी इच्छा के चंगुल में ही फस जाय, मन में विचार शक्ति ही न हरे, भला क्या है-यह सोच सके, कानून का डर क्या है-न यह सोच सके, तब रोगी ऐनाकार्डियम औषधि के क्षेत्र में आ जाता है।

(3) यह अनुभूति कि सब अवास्तविक है – रोगी को ऐसा अनुभव होता है कि जो कुछ है वह सब अयथार्थ है, अवास्तविक है। वेदान्त की दृष्टि से ऊहापोह करके सैद्धान्तिक दृष्टि से वह ऐसा नहीं सोचता, उसे लगता ही ऐसा है कि जो कुछ दीखता है वह वैसा नहीं है। पुत्र पुत्र नहीं है, पति पति नहीं है।
(4) अन्य प्रकार के भ्रम-सब पर सन्देह, कोई पीछा कर रहा है ऐसा ख्याल आना – इस औषधि में न्यूरेस्थेनिया प्रधान है। रोगी को सब पर सन्देह होता है। चलते हुए बार-बार पीछे देखता है क्योंकि उसे शक होता हैं कि कोई पीछा कर रहा है। लगता है कि एक कन्धे पर शैतान बैठा है, दूसरे पर फरिश्ता।
(5) बिना हंसी की बात पर हंस देना, और हंसी की बात पर संजीदा हो जाना – ऐनाकार्डियम औषधि भ्रमों से इतनी पूर्ण है कि रोगी ऐसी बात पर संजीदा हो उठता है जिस पर सब हंस पड़े। उक्त प्रकार के मानसिक लक्षणों में इस औषधि का उपयोग किया जाता है।
(6) खाने के बाद सिर दर्द आदि में आराम – ऐनाकार्डियम तथा नक्स की तुलना – अपचन में प्राय: होम्योपैथ एकदम नक्स वोमिका दे देते हैं परन्तु नक्स और ऐनाकार्डियम के अपचन की तुलना कर लेना उचित है। ऐनाकार्डियम में पेट जब खाली होता है तब दर्द होता है, खाने से पेट-दर्द हट जाता हैं, नक्स में जब तक पेट में खाना रहता है तब तक दर्द होता है। खाना हजम होने की प्रक्रिया में 2-3 घंटे लगते हैं। नक्स तब तक परेशान रहता है, खाना हजम होने के बाद उसकी तबियत ठीक हो जाती है, ऐनाकार्डियम में खाना हजम हो जाने के बाद रोगी की तबीयत फिर बिगड़ जाती है। पाचन-क्रिया के बाद नक्स ठीक हो जाता है, ऐनाकार्डियम के रोगी के लक्षण तब शुरू हो जाते हैं। दोनों इस बात में एक दूसरे से उल्टे हैं। डॉ० नैश लिखते हैं कि उन्होंने एक रोगी को जिसका कष्ट पेट के खाली हो जाने पर बढ़ जाता था ऐनोकार्डियम 200 से बिल्कुल ठीक कर दिया। इस लक्षण में सिर-दर्द में भीं लाभप्रद हैं।
एनाकार्डियम तथा नक्स दोनों में पाखाने की असफल इच्छा होती है, परन्तु ऐनाकार्डियम में गुदा-प्रदेश की मांसपेशियों की पक्षाघात की-सी अवस्था के कारण ऐसा होता है, और नक्स में आंतों की अनियमित अग्रगति के कारण ऐसा होता हैं। ऐनाकार्डियम में शौच जाने की इच्छा होती है परन्तु गुदा के मांसपेशियों की अक्रिया के कारण पाखाना नहीं होता, नक्स में भी शौच जाने की इच्छा होती है परन्तु पाखाना पूरा नहीं हो पाता, बार-बार थोड़ा-थोड़ा होता है। क्योंकि ऐनाकार्डियम में शौच नहीं हो पाता इसलिये आतों में शौच एकत्रित हो जाने के कारण गुदा-प्रदेश में डाट लगा-सा अनुभव होता हैं। इन लक्षणों को ध्यान में रखते हुए इन दोनों में भेद कर सकना आसान है।
(7) परीक्षा से घबराहट – मानसिक-दुर्बलता ऐनाकार्डियम औषधि का चरित्रगत लक्षण है। इस औषधि के मानसिक-लक्षणों के विषय में हमने जो कुछ लिखा है उससे स्पष्ट है कि इस औषधि का मन पर विशेष प्रभाव पड़ता है। इन्हीं मानसिक लक्षणों में एक लक्षण मानसिक-दुर्बलता है। विद्यार्थी मानसिक-दुर्बलता का यह लक्षण पाया जाता हैं। विद्यार्थी देर तक मानसिक श्रम करने के बाद इतना थक जाता हैं कि परीक्षा में अनुतीर्ण होने का उसे भय सताता है। भेद यह है कि ऐनाकार्डियम का रोगी ठंड की सहन नहीं कर सकता और पिकरिक एसिड का रोगी गर्मी को सहन नहीं कर सकता। परीक्षा से घबराहट में निम्न-शक्ति देना ठीक रहता है।
(8) नींद न आना – रोगी को कई रात नींद नहीं आती। रोगिणी को कुछ दिन तो ठीक नहीं आती है, परन्तु फिर नींद न आने का दौरे पड़ता है और कई दिन नींद नहीं आती। डॉ० कास्टिस ने उक्त लक्षणों में एक गर्भवती स्त्री का अनिद्रा का रोग 200 शक्ति की यह औषधि देकर दूर कर दिया था।
शक्ति तथा प्रकृति – 6 से 200 शक्ति। औषधि ‘सर्द’ प्रकृति के लिये है।

ऐम्ब्राग्रीशिया | ऐम्ब्रा ग्रीशिया | AMBRA GRISEA | AMBRA GRISEA Benefits, Side Effects and Uses In Hindi


परिचय 

Ambra Grisea एक होम्योपैथिक दवा है जो व्हेल की आंतों से प्राप्त होती है। इसे कई स्वास्थ्य समस्याओं के इलाज के लिए उपयोग किया जाता है। आइए इसके फायदों, साइड इफेक्ट्स और उपयोग के बारे में विस्तार से जानते हैं।

फायदे

  1. तनाव और चिंता में राहत: Ambra Grisea मानसिक तनाव, चिंता और अवसाद को कम करने में मदद करती है। यह उन लोगों के लिए विशेष रूप से उपयोगी है जो छोटी-छोटी बातों पर घबराहट महसूस करते हैं।

  2. नींद की समस्याएं: यह दवा अनिद्रा और अन्य नींद संबंधित समस्याओं को दूर करने में सहायक है। यह मस्तिष्क को शांत करती है जिससे अच्छी नींद आती है।

  3. पाचन समस्याएं: Ambra Grisea पाचन तंत्र को बेहतर बनाती है और कब्ज, एसिडिटी और अन्य पाचन समस्याओं को कम करने में मदद करती है।

  4. दिल की समस्याएं: यह दवा दिल की धड़कन को नियमित करती है और हृदय संबंधित समस्याओं से राहत दिलाती है।

  5. सांस की समस्याएं: अस्थमा और खांसी जैसी सांस संबंधित समस्याओं में भी यह दवा प्रभावी है।

साइड इफेक्ट्स

Ambra Grisea के कोई गंभीर साइड इफेक्ट्स नहीं होते हैं, लेकिन कुछ मामलों में हल्के साइड इफेक्ट्स हो सकते हैं जैसे:

  • चक्कर आना
  • उल्टी जैसा महसूस होना
  • हल्का सिरदर्द

यदि किसी व्यक्ति को इन साइड इफेक्ट्स का अनुभव होता है, तो उन्हें तुरंत डॉक्टर से परामर्श लेना चाहिए।

उपयोग

  1. खुराक: Ambra Grisea की खुराक व्यक्ति की उम्र, स्वास्थ्य और समस्या की गंभीरता पर निर्भर करती है। इसे होम्योपैथिक डॉक्टर की सलाह पर ही लेना चाहिए।

  2. आवृत्ति: इसका सेवन आमतौर पर दिन में 2-3 बार किया जा सकता है, लेकिन डॉक्टर की सलाह के बिना खुराक नहीं बढ़ानी चाहिए।

  3. अवधि: दवा की अवधि भी समस्या की गंभीरता पर निर्भर करती है। कुछ मामलों में इसे लंबे समय तक लेना पड़ सकता है।

निष्कर्ष

Ambra Grisea एक प्रभावी होम्योपैथिक दवा है जो कई समस्याओं का इलाज करती है। इसे सही खुराक और आवृत्ति में लेने से इसके लाभ मिलते हैं। हालांकि, किसी भी दवा को लेने से पहले होम्योपैथिक डॉक्टर की सलाह अवश्य लें।

इस लेख को पढ़कर आपको Ambra Grisea के फायदे, साइड इफेक्ट्स और उपयोग के बारे में संपूर्ण जानकारी मिल गई होगी। अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखें और स्वस्थ रहें।

Tuesday, 1 October 2019

झूठ बोलने या ठगने का होम्योपैथिक इलाज [ Homeopathic Medicine For Falsify, Cheat ]


वेरेट्रम एल्बम 30 — रोगी म्लान-चित्त, उदास, जड़वत् बैठा रहता है, किसी बात पर उसका ध्यान नहीं जाता, पागलपन में वह चिल्लाता है, गालियां बकता है, कपड़े फाड़ डालता है। जब पागलपन का प्रभाव नहीं रहता, तब धोखा देता है, झूठ बोलता है और ठगने की कोशिश करता है, तब इस औषधि का प्रयोग करना चाहिए।
प्लम्बम 30 — धोखा देने और ठगने की प्रवृत्ति को यह औषधि दूर करती है।
ओपियम 200 — धोखा देना, ठगना, झूठ बोलना आदि दुर्गुणों के प्रबल हो जाने तथा उच्च-स्तर की मानसिक-शक्तियों के ढीली पड़ जाने में यह औषधि लाभप्रद है।

मसूढ़ों के रोग का होम्योपैथिक इलाज [ Homeopathic Medicine For Gum Diseases ]

ऐसे लोगों की कोई कमी नहीं हैं, जो केवल दांतों की सफाई की ओर ही अधिक ध्यान देते हैं और मसूढ़ों के प्रति बेपरवाह होते हैं, जबकि दांतों की सुंदरता और सुरक्षा केवल मसूढ़ों द्वारा ही संभव होती है, अतः दांतों के साथ-साथ मसूढ़ों की साफ-सफाई की ओर भी पूरा ध्यान दिया जाना चाहिए।

मर्क सोल 200 — मसूढ़ों में प्रदाह (सूजन) के साथ असह्य-वेदना। मसूढ़ों के साथ-साथ गाल पर भी सूजन आ जाती है। कभी-कभी मसूढ़े में फोड़ा भी हो जाता है। रोगी को बेहद पसीना आता है, मुंह में लार भर जाती है, प्यास भी अधिक लगती है। यह औषधि इसमें बहुत अधिक लाभ करती है।
हिपर सल्फर 30, 200 — यदि मसूढ़े में फोड़ा बन जाए या फोड़ा बनने की आशंका हो, तो इसका उपयोग लाभकारी है। इसके उपयोग से या तो फोड़ा बैठ जाएगा या उसकी पस निकल जाएगी।
साइलीशिया 6, 30 — यदि हिपर से लाभ न हो, तो इसे देकर देखना चाहिए।
बेलाडोना 30 — यदि मसूढ़े की सूजन या फोड़े में टपकन के साथ दर्द भी हो, तो यह उपयोगी औषधि है।
आर्निका 6, 30 — यदि नकली दांत लगाने पर मसूढ़े में सूजन या दर्द हो, तब दें।
फास्फोरस 30 — यदि मसूढ़े पर सूजन आने के बाद रक्त जाने लगे, मसूढे में घाव हो जाए; किसी भी प्रकार के रक्तस्राव में यह उपयोगी है।
कार्बोवेज 6, 30 — जब दांत मसूढ़ों का साथ छोड़ दें, उनमें से पस निकलने लगे, मुंह में लार भरी रहे, घाव हो जाए, तब यह लाभ करती है।
फ्लोरिक एसिड 30 — जब किसी औषधि से लाभ न हो, तो इस औषधि की 30 शक्ति की दिन में 3 मात्राएं कुछ दिन तक देकर देखना चाहिए।
ट्युबर्म्युलीनम 200 — यदि उपरोक्त औषधि को देने के बाद भी शिकायत बनी रहे, तो 15 दिन में एक बार इस औषधि की 1 मात्रा दो-तीन महीने तक दें।

कारसिनोसीन 30, 200 — यह नोसोड कैंसर से बना है। यदि मसूढ़े में कैंसर का लक्षण पाया जाए, तब इस औषधि के प्रयोग से रोग बढ़ नहीं पाता है और दर्द-कष्ट में आराम मिलता है।

ऐलो साकोट्रिना | Aloe Socotrina | ऐलो साकोट्रिना (Aloe Socotrina) का गुण, लक्षण

ऐलो साकोट्रिना (ALOE SOCOTRINA) ऐलो साकोट्रिना मेडिसिन पेचिश, बवासीर, शारीरिक तथा मानसिक थकान, कब्ज आदि रोगों में लाभकारी होता है। अधिक मात्रा में दवाई लेने से होने वाले साइडिफैक्ट को दूर करने के लिए भी ऐलो साकोट्रि का उपयोग किया जाता है। Aloe Socotrina homeopathy, Aloe Socotrina homeopathy, Aloe Socotrina for diarrhea, साकोट्रिना मेडिसिन


अधिक औषधि प्रयोग के बाद जब औषधि और रोग के लक्षण मिश्रित हो गये हों ऐसी अवस्था में शारीरिक क्रिया को फिर से संतुलित करने के लिए अति उत्तम औषधि है । रक्त संचित होने के सर्वाधिक लक्षण इसी दवा में पाये जाते हैं और चिकित्सा की दृष्टि से निदान सम्बन्धी प्रथम और गौण लक्षण भी अन्य किसी दवा में इतने नहीं पाये जाते । निठल्ला जीवन बिताने के कुपरिणाम । कफ प्रकृति वालों और वहमी तबीयत वालों के लिए खासकर हितकर है । सरलांत्र के लक्षण ही इसके व्यवहार का निर्देश देते हैं । हारे-थके व्यक्ति, वृद्ध, कफ प्रकृति वाले, बियर के पुराने पियक्कड़, अपने ऊपर झुंझलाने और कमर दर्द के दौरे बारी-बारी से हों । अन्दर-बाहर गर्मी लगे । फेफड़ों के क्षेत्र में इसके शुद्ध रस से आराम पहुँचा है ।
सिर — सिर दर्द और कटिवात बारी-बारी से हों जबकि आँत और गर्भाशय के रोग भी मौजूद हों । मानसिक परिश्रम से उदासीनता । आँखों के भारीपन के साथ जो आधी बन्द हों, माथे के ऊपर दर्द । मलत्याग के बाद सिर दर्द । धीमा दाब दर्द, जो गरमी से बढ़ें ।
आँखें — माथे के दर्द में सिकोड़े रहे । आँखों के सामने टिमटिमाहट । सब चीज पीली दिखायी देने के साथ आँखें लाल हों । घेरे की गहराई में दर्द ।
चेहरा — होंठ अधिक लाल प्रतीत हों ।
कान — चबाते समय कड़कड़ाहट, एकाएक धड़ाका और धक्का बायें कान में किसी पतले धातु के फटे गोले की टनटनाहट का शब्द सिर में ।
नाक — सिर ठण्डा । सुबह जागने पर खून गिरे । खुरण्ड से भरी हो ।
मुँह — स्वाद कड़वा, खट्टा । स्वादहीन डकार, होंठ सूखे, चिटके ।
गला — चिमड़े श्लेश्मा के मोटे ढोके । गलकोष की नसें फैली हुई । सूखा खुरखुर संवेदन ।
आमाशय — माँस से घृणा । रसदार चीजों की इच्छा । खाने के बाद वादी । गुदा में धुकधुकी और कामोत्तेजना । सिर दर्द के साथ मिचली । गलत कदम पड़ने पर गट्ठे में दर्द ।
उदर — नाभि की चारों तरफ दर्द जो दाब से बढ़े । जिगर प्रदेश में भारापन, दाहिनी तरफ की पसली के नीचे दर्द । उदर भरा, भारी, गरम और फूला हुआ मालूम पड़े । नाभि की चारों तरफ टपक के साथ दर्द, कमजोरी जैसे अभी पतला पाखाना होगा । अधिक वायु संचयता, नीचे की तरफ दबाव जिससे सबसे नीचे वाली आँतों में कष्ट हो । भगसन्धि और नितम्बास्थि के बीच गुल्ली एक जैसा संवेदन, साथ में मलत्याग की इच्छा । मलत्याग के पहले और बाद में शूल । अधिक जलनदार वायु खुले ।


मलान्त्र — मलाशय में लगातार नीचे की तरफ धंसने जैसा संवेदन हो, खून बहना, छरछराहट, मलाशय ठंडे पानी से कम हो । मलद्वार संकोचक पेशियों में शक्तिहीनता और दुर्बलता का संवेदन । मलाशय में अविश्वास की भावना, विशेषतः वायु खुलने के समय अनिश्चितता । वायु के साथ मल न निकल पड़े । मलत्याग बिना परिश्रम, बेमालूम, ढोकेदार और पनीला । लपसी जैसा मल और साथ में मल त्याग के बाद मलाशय में छरछराहट । मलत्याग के बाद मूत्राशय के दर्द के साथ अधिक मात्रा में श्लेष्मा निकले । खूनी बवासीर, मस्से अंगूर के गुच्छे की तरह बाहर निकले हों, बहुत कोमल और पीड़ाजनक, ठण्डे पानी से कष्ट कम हो । मलद्वार और मलाशय में जलन कब्ज और साथ में आमाशय के निचले भाग में भारी दाब । बियर पीने से दस्त हों ।
मूत्र — वृद्धावस्था में मूत्र न रुके, धंसन संवेदन और प्रोस्टेट ग्रन्थियाँ बढ़ी हुई हों । थोड़ी और रंगदार । ।

स्त्री — मलाशय में नीचे को दाब, जो खड़े होने और मासिक काल में बढ़े । गर्भाशय भारी मालूम पड़े जिनकी वजह से अधिक चल-फिर न सके । कमर में प्रसव जैसा दर्द टाँगों के नीचे तक उतरे । संधिकाल में रक्त बहना । मासिक धर्म समय से बहुत पतले और मात्रा में बहुत अधिक ।
श्वास यन्त्र — जाड़े की खाँसी-खाज के साथ । जिगर में सीने तक चिलकन के साथ कष्टदायक साँस ।
पीठ — पिठासे में दर्द, हिलने से बढ़े । त्रिकास्थि के आर-पार चिलक । कटिवात । सिर दर्द और बवासीर बारी-बारी से हों ।
अंग — सभी अंगों में लँगड़ापन । जोड़ में खींच के साथ दर्द । टहलने से तलवों में दर्द ।
घटना-बढ़ना — प्रातःकाल गरमी में, गरम सेंक से, सूखे गरम मौसम में, खाने पर खाने या पीने से । घटना — ठंडी, खुली हवा में ।
सम्बन्ध-पूरक — सल्फर ।
तुलना कीजिए — कैली बाइक्रो, लाइको., एलियम सैंट. ।
शामक — ओपियम, सल्फ ।
मात्रा — 6 शक्ति और उससे ऊँची । गुदा लक्षण में 3 शक्ति की कुछ मात्रा, फिर प्रतीक्षा कीजिए ।

बूढ़ोँ को जवान बनाने वाली होम्योपैथिक औषधियां

ध्यान दे दवाये किसी योग्य होम्योपैथी डाक्टर के देखरेख मेँ लेँ

बूढ़ोँ को जवान बनाने वाली होमियोपैथिक औषधियाँ


1) एवेना स्टीवा - Q ( Avena sativa - Q ) : 1. यह दवा मस्तिष्क , नाड़ी संस्थान मेँ जोश और शक्ति उत्पन्न करती है । थोड़ा काम करने पर थक जाना , नीँद न आना , याद न रहना आदि रोगोँ को दूर करती है । मानसिक परिश्रम करने वालोँ के लिए लाभप्रद है । 32 ML ₹ 35
2. ह्रदय की कमजोरी , ह्रदय अधिक धड़कना , बिना कारण क्रोध आ जाना तथा अधिक शराब पीने के कारण नीँद न आनेँ मेँ भी लाभप्रद है ।
3. रात को स्वप्न मेँ या बिना स्वप्न के मूत्र - पखाना करते समय वीर्य निकल जाना , वीर्य पतला और वीर्यकीटोँ का कमजोर होना तथा मर्दाना कमजोरी मेँ बहुत लाभप्रद है ।
2) जैल्सीमियम - Q ( Gelsimiun - Q ) : रात को इन्द्री मेँ जोश आकर या बिना सपने मेँ वीर्य निकल जाना , गुप्ताँग ठंडा , ढ़ीला - ढ़ाला और लटका हुआ , हस्तमैथुन के रोगियोँ के स्वप्नदोष , वीर्य प्रमेह , रोगी चिड़चिड़ा और साहसहीन हो तो 5 - 10 बूँदेँ थोड़े जल मेँ मिलाकर दिन मेँ 2 - 3 बार देँ । 32 ML ₹ 40
3) एग्नस कास्टस - Q ( Agnus castus - Q ) : जवानी की कुचेष्टाओँ , हस्तमैथुन और अधिक वीर्यनाश कर लेने के कारण रोगी जवानी मेँ बूढ़ा दिखाई दे , मानसिक शक्ति घट गई हो , वीर्य पतला और आसानी से मूत्र और पखाना के साथ या स्वप्न मेँ निकल जाये , नपुंसकता , लिँग ढ़ीला और संभोग की इच्छा न हो । सुजाक से उत्पन्न नपुंसकता की यह मुख्य औषधि है । वीर्यनाश से दृष्टी कमजोर होना , समय से पूर्व बुढ़ापा आ जाना , रोगी आत्महत्या करने का विचार करेँ और अत्यन्त दुखी हो । 5-10 बूँद जल मेँ मिलाकर दिन मेँ 2-3 बार देँ । 30 ML ₹ 35
4) स्टेफिसेग्रिया - Q ( Staphysagria - Q ) : हस्तमैथुन का रोगी जो दूसरोँ से आँख न मिलाये , हस्तमैथुन के कारण आँखेँ अंदर धसी हो और उनके नीचे काली लाईने हो , सख्त निराशावादी , दुखी , दिमाग कमजोर , कोई बात याद न रहे , थोड़ा लिखने - पढ़ने पर थकावट हो जाये , बुढ़ोँ की नपुँसकता मेँ कामवासना और संभोग की इच्छा न होना , परंतु संभोग के योग्य न होना । रोगी जिसमेँ संभोग इच्छा बिल्कुल न हो और संभोग के समय इन्द्री मेँ जोश न आये , लिँग ठंडा तथा पुराने सुजाक से उत्पन्न नपुंसकता मेँ 5 - 8 बूँदेँ पानी मेँ मिलाकर दिन मेँ 2 - 3 बार देँ । 32 ML ₹ 45
5) एसिड फास - Q ( Acid phos - Q ) : जब काफी समय तक वीर्यनाश करते रहने , स्वप्नदोष , वीर्य प्रमेह के कारण शरीर खोखला , दुबला और कमजोर हो चुका हो , टाँगोँ मेँ कमजोरी , रीढ़ की हड्डी मेँ रात को जलन और गर्मी प्रतीत हो , लिँग टेढ़ा , अंडकोष लटके हुए , इन्द्री मेँ संभोग के समय जोश न आये और इन्द्री भली प्रकार उत्तेजित न हो , स्त्री के पास जाते ही उत्तेजना आने से पहले ही वीर्य निकल जाये , अण्डकोषोँ पर च्यूंटियाँ चलती प्रतित होँ , संभोग करने पर इन्द्री शीघ्र ढीली हो जाने से रोगी संभोग न कर सके , चेहरा पीला व पिचका हुआ और आँखेँ अंदर धंसी हुई होँ , नपुंसकता , वीर्यनाश कर लेने के कारण ह्रदय अधिक धड़के , वजन गिरता जाये , भुख कम लगे , पढ़ने - लिखने और मानसिक कार्य करने पर सिरदर्द हो जाये , कमरदर्द , बाल झड़ने और बाल समय से पहले सफेद हो जायेँ , रक्ताल्पता , भोजन न पचने से दस्त आयेँ , वीर्य प्रमेह , रोगी दुखी और अकेला रहेँ । हस्तमैथुन के रोगियोँ के लिए सर्वोत्तम औषधि है । 4 - 6 बूँदेँ पानी मेँ मिलाकर दिन मेँ 2-3 बार देँ । 32 ML ₹ 35
6) डमियाना - Q( Damiana - Q ) : अधिक संभोग और वीर्यनाश करने , आतशक , सुजाक , मस्तिष्क पर चोट लग जाने या किसी भी कारण से हुई नपुंसकता मेँ अनुभूत है । रोगी की शारीरिक व मानसिक शक्ति और नाड़ी संस्थान कमजोर हो चुका हो , संभोग करते ही साँस फूल जाये , थोड़े परिश्रम से थकावट हो जाये , इन्द्री से लेसदार तरल निकलता हो । 5-7 बूँदेँ थोड़े पानी मेँ मिलाकर दिन मेँ 2-3 बार देँ । 32 ML ₹ 45 7)
अश्वगन्धा - Q ( Ashwagandha - Q) : नपुंसकता तथा मर्दाना शक्ति बिल्कुल कम हो जाने से रोगी दुबला हो गया हो , मानसिक शक्ति कमजोर हो चुकी हो , पढ़ा - लिखा याद न रहता हो , कमर व टाँगोँ मेँ दर्द हो , रोगी सर्दी सहन न कर सके , बार - बार सर्दी , जुकाम हो जाये , पढ़ाई मेँ कमजोर , स्वप्नदोष हो और जवानी मेँ बुढ़ापा आ जाये तो इसके 1 - 2 मास प्रयोग करने से काया पलट जाती और नई शक्ति , जोश और जवानी आ जाती है । 5 - 10 बूँदेँ थोड़े पानी मेँ मिलाकर दिन 2 - 3 बार देँ । 32 ML ₹ 40
8) जिनसेँग - Q ( Ginseng - Q ) : बार बार संभोग करने से वीर्य स्खलन करने से आमवात जैसी दर्दे होना , पुरुषोँ के गुप्त अंगोँ की कमजोरी , मूत्रमार्ग के किनारे पर कामोत्तेजक गुदगुदी होने और लैँगिक उत्तेजना होना मेँ उपयोगी । 3-4 बूँद आधे कप पानी मेँ मिलाकर देँ । 32 ML ₹ 55
9) सैबाल सेरुलाटा - Q : यह जनन मूत्राँगोँ की उत्तेजना को शांत करती है । यौन दुर्बलता को दूर करती और तन्तुओँ की वृद्धि करती है । प्रोस्टेट ग्रन्थि संबंधि शोथ के साथ पारितारिका शोथ तथा मूत्र संबंधी रोगी मेँ रामबाण है । पुराना प्रमेह तथा मूत्र करने मेँ पीड़ा होने मेँ रामबाण है । यौन शक्ति का कम होना या न होना , वीर्यपात होते समय पीड़ा होना , यौन रोगजनित स्नायुविकार ग्रस्त रोगी की जननेन्द्रिय ठंठी होना मेँ उपयोगी , 10 - 15 बूँदेँ आधा कप पानी मेँ मिलाकर दिन मेँ 2 - 3 बार देँ । 32 ML ₹ 40
रोगियोँ को निम्न योग्य से जवानी की लहरेँ आने लगती हैँ । इससे नया रक्त उत्पन्न होता , भुख बढ़ जाती , खाया पिया हज्म होने लगता और चेहरे का रंग गुलाबी के फूल की भाँति निखर आता है । योग : जिनसेँग 3 बूँद डमियाना Q 3 बूँद अश्वगन्धा Q 3 बूँद स्टेफिसेग्रिया Q 3 बूँद एवेना स्टीवा Q 3 बूँद सैबाल सेरुलाटा 3 बूँद उपरोक्त योग की ऐसी 1-1 मात्रा दिन मेँ 3 बार आधा कप पानी मेँ मिलाकर दिन मेँ 3 बार देँ ।
खट्टी चीजोँ से परहेज करायेँ । माँस , मछली आदि का अधिक सेवन करेँ । रोगी संभोग सीमित मात्रा मेँ करेँ ।