आम तौर पर हर्निया होने का कारण पेट की दीवार का कमजोर होना है |पेट और जांघों के बीच वाले हिस्से मे जहां पेट की दीवार कमजोर पड़ जाती है वहाँ आंत का एक गुच्छा उसमे छेद बना कर बाहर निकल आता है | उस स्थान पर दर्द होने लगता है | इसी को आंत्र उतरना,आंत्रवृद्धि या हर्निया कहते हैं|
एबडॉमिनल वॉल के कमजोर भाग के अंदर का कोई भाग जब बाहर की ओर निकल आता है तो इसे हर्निया कहते हैं। हर्निया में जांघ के विशेष हिस्से की मांसपेशियों के कमजोर होने के कारण पेट के हिस्से बाहर निकल आते हैं। हर्निया की समस्या जन्मजात भी हो सकती है। ऐसी स्थिति में इसे कॉनजेनाइटल हर्निया कहते हैं। हर्निया एक वक्त के बाद किसी को भी हो सकता है। आमतौर पर लोगों को लगता है कि हर्निया का एकमात्र इलाज सर्जरी है जिसकी वजह से वे डॉक्टर के पास जाने से डरते हैं। लेकिन ऐसा नहीं है हर्निया बिना सर्जरी के भी ठीक हो सकता है।
जब किसी व्यक्ति की आंत अपने जगह से उतर जाती है तो उस व्यक्ति के अण्डकोष की सन्धि में गांठे जैसी सूजन पैदा हो जाती है जिसे यदि दबाकर देखा जाए तो उसमें से कों-कों शब्द की आवाज सुनाई देती हैं। आंत उतरने का रोग अण्डकोष के एक तरफ पेड़ू और जांघ के जोड़ में अथवा दोनों तरफ हो सकता है। जब कभी यह रोग व्यक्ति के अण्डकोषों के दोनों तरफ होता है तो उस रोग को हार्निया रोग के नाम से जाना जाता है। वैसे इस रोग की पहचान अण्डकोष का फूल जाना, पेड़ू में भारीपन महसूस होना, पेड़ू का स्थान फूल जाना आदि। जब कभी किसी व्यक्ति की आंत उतर जाती है तो रोगी व्यक्ति को पेड़ू के आस-पास दर्द होता है, बेचैनी सी होती है तथा कभी-कभी दर्द बहुत तेज होता है और इस रोग से पीड़ित व्यक्ति की मृत्यु भी हो सकती है। कभी-कभी तो रोगी को दर्द भी नहीं होता है तथा वह धीरे से अपनी आंत को दुबारा चढ़ा लेता है। आंत उतरने की बीमारी कभी-कभी धीरे-धीरे बढ़ती है तथा कभी अचानक रोगी को परेशान कर देती है।
प्राकृतिक चिकित्सा के अनुसार देखा जाए तो आंत निम्नलिखित कारणों से उतर जाती है-
1. कठिन व्यायाम करने के कारण आंत उतरने का रोग हो जाता है।
2. पेट में कब्ज होने पर मल का दबाव पड़ने के कारण आंत उतरने का रोग हो जाता है।
3. भोजन सम्बन्धी गड़बड़ियों तथा शराब पीने के कारण भी आंत अपनी जगह से उतर जाती है।
4. मल-मूत्र के वेग को रोकने के कारण भी आंत अपनी जगह से उतर जाती है।
5. खांसी, छींक, जोर की हंसी, कूदने-फांदने तथा मलत्याग के समय जोर लगाने के कारण आंत अपनी जगह से उतर जाती है।6. पेट में वायु का प्रकोप अधिक होने से आंत अपनी जगह से उतर जाती है।
7. अधिक पैदल चलने से भी आंत अपनी जगह से उतर जाती है।
8. भारी बोझ उठाने के कारण भी आंत अपनी जगह से उतर जाती है।
9. शरीर को अपने हिसाब से अधिक टेढ़ा-मेढ़ा करने के कारण आंत अपनी जगह से उतर जाती है।
जिस हर्निया में आंत उलझ कर गाँठ लग गयी हो और मरीज को काफी तकलीफ हो रही हो, ऐसे बिगड़े केस में तत्काल ऑपरेशन जरुरी है. बाकी सभी मामलों में हार्निया बिना आपरेशन के ही ठीक हो सकता है.
हर्निया की प्रारम्भिक स्थिति मे पेट की दीवार मे कुछ उभार सा प्रतीत होता है| इस आगे बढ़ी हुई आंत को पीछे भी धकेला जा सकता है लेकिन ज्यादा ज़ोर लगाना उचित नहीं है|
*अगर आगे बढ़ी आंत को आराम से पीछे धकेलकर अपने स्थान पर पहुंचा दिया जाए तो उसे उसी स्थिति मे रखने के लिए कस कर बांध देना चाहिए| यह तरीका असफल हो जाये तो फिर आपरेशन की सलाह देना उचित है|
*पेट की तोंद ज्यादा निकली हुई हो तो उसे भी घटाने के उपचार जरूरी होते हैं|
*अरंडी का तेल दूध मे मिलाकर पीने से हर्निया ठीक हो जाता है |इसे एक माह तक करें|
*काफी पीने से भी बढ़ी हुई आंत के रोग मे फायदा होता है|
हर्निया या आंत उतरने का मूल कारण पुराना कब्ज है। कब्ज के कारण बडी आंत मल भार से अपने स्थान से खिसककर नीचे लटकने लगती है। मल से भरी नीचे लटकी आंत गांठ की तरह लगती है। इसी को हार्निया या आंत उतरना कहते हैं।
*कुन कुना पानी पीकर 5 मिनिट तक कौआ चाल (योग क्रिया) करके फिर पांच या अधिक से अधिक दस बार तक सूर्य नमस्कार और साथ ही 200 से 500 बार तक कपाल-भांति करने से फूली हुई आंत वापस ऊपर अपने स्थान पर चली जाती है। भविष्य में कभी भी आपको हार्निया और पाइल्स होने की सम्भावना नही होगी।
हर्निया के होम्योपैथिक उपचार –
*सुबह उठते ही सबसे पहले आप सल्फर 200 7 बजे, दोपहर को आर्निका 200 और रात्रि को खाने के एक से दो घंटे बाद या नौ बजे नक्स वोम 200 की पांच-पांच बूँद आधा कप पानी से एक हफ्ते तक ले, फिर हर तीन से छह माह में तीन दिन तक लें.
*केल्केरिया कार्ब 200 की पांच बूँद आधा कप पानी से पांच दिन तक लें.
*जब भी अचानक जलन, दर्द, सूजन होना, घबराहट, ठंडा पसीना और मृत्यु भय हो, तो एकोनाइट 30 की पांच बूँद आधा कप पानी से हर घंटे में लें.
*जब दाहिने भाग में हार्निया हो, तो लाइकोपोडियम 30 की पांच बूँद आधा कप पानी से दिन में तीन बार लें.
आंत उतरने से पीड़ित व्यक्ति का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार:-
1. प्राकृतिक चिकित्सा के अनुसार जब किसी व्यक्ति की आंत उतर जाती है तो रोगी व्यक्ति को तुरन्त ही शीर्षासन कराना चाहिए या उसे पेट के बल लिटाना चाहिए। इसके बाद उसके नितम्बों को थोड़ा ऊंचा उठाकर उस भाग को उंगुलियों से सहलाना और दबाना चाहिए। जहां पर रोगी को दर्द हो रहा हो उस भाग पर दबाव हल्का तथा सावधानी से देना चाहिए। इस प्रकार की क्रिया करने से रोगी व्यक्ति की आंत अपने स्थान पर आ जाती है। इस प्रकार से रोगी का उपचार करने के बाद रोगी को स्पाइनल बाथ देना चाहिए, जिसके फलस्वरूप रोगी व्यक्ति की पेट की मांसपेशियों की शक्ति बढ़ जाती है तथा अण्डकोष संकुचित हो जाते हैं।2. रोगी की आंत को सही स्थिति में लाने के लिए उसके शुक्र-ग्रंथियों पर बर्फ के टुकड़े रखने चाहिए जिसके फलस्वरूप उतरी हुई आंत अपने स्थान पर आ जाती है।3. यदि किसी समय आंत को अपने स्थान पर लाने की क्रिया से आंत अपने स्थान पर नहीं आती है तो रोगी को उसी समय उपवास रखना चाहिए। यदि रोगी के पेट में कब्ज हो रही हो तो एनिमा क्रिया के द्वारा थोड़ा पानी उसकी बड़ी आंत में चढ़ाकर, उसमें स्थित मल को बाहर निकालना चाहिए इसके फलस्वरूप आंत अपने मूल स्थान पर वापस चली जाती है।
4. प्राकृतिक चिकित्सा के अनुसार इस रोग का उपचार करने के लिए हार्निया की पट्टी का प्रयोग करना चाहिए। इस पट्टी को सुबह के समय से लेकर रात को सोने के समय तक रोगी के पेट पर लगानी चाहिए। यह पट्टी तलपेट के ऊपर के भाग को नीचे की ओर दबाव डालकर रोके रखती है जिसके फलस्वरूप रोगी को बहुत अधिक लाभ मिलता है। इस प्रकार से रोगी का उपचार करने से उसकी मांसपेशियां सख्त हो जाती हैं और रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है। ठीक रूप से लाभ के लिए रूग्णस्थल (रोग वाले भाग) पर प्रतिदिन सुबह और शाम को चित्त लेटकर नियमपूर्वक मालिश करनी चाहिए। मालिश का समय 5 मिनट से आरम्भ करके धीरे-धीरे बढ़ाकर 10 मिनट तक ले जाना चाहिए। रोगी के शरीर पर मालिश के बाद उस स्थान पर तथा पेड़ू पर मिट्टी की गीली पट्टी का प्रयोग लगभग आधे घण्टे तक करना चाहिए। जिसके फलस्वरूप यह रोग ठीक हो जाता है।
5. प्राकृतिक चिकित्सा के अनुसार रोगी व्यक्ति के पेट पर मालिश और मिट्टी लगाने तथा रोगग्रस्त भाग पर भाप देने से बहुत अधिक लाभ मिलता है।
6. इस रोग का इलाज करने के लिए पोस्ता के डोण्डों को पुरवे में पानी के साथ पकाएं तथा जब पानी उबलने लगे तो उसी से रोगी के पेट पर भाप देनी चाहिए और जब पानी थोड़ा ठंडा हो जाए तो उससे पेट को धोना चाहिए। जिसके फलस्वरूप यह रोग ठीक हो जाता है।
निम्नलिखित व्यायामों के द्वारा आंत उतरने के रोग को ठीक किया जा सकता है-
1. यदि आंत उतर गई हो तो उसका उपचार करने के लिए सबसे पहले रोगी के पैरों को किसी से पकड़वा लें या फिर पट्टी से चौकी के साथ बांध दें और हाथ कमर पर रखें। फिर इसके बाद रोगी के सिर और कन्धों को चौकी से 6 इंच ऊपर उठाकर शरीर को पहले बायीं ओर और फिर पहले वाली ही स्थिति में लाएं और शरीर को उठाकर दाहिनी ओर मोड़े। फिर हाथों को सिर के ऊपर ले जाएं और शरीर को उठाने का प्रयत्न करें। यह कसरत कुछ कठोर है इसलिए इस बात का ध्यान रखें कि अधिक जोर न पड़े। सबसे पहले इतनी ही कोशिश करें जिससे पेशियों पर तनाव आए, फिर धीरे-धीरे बढ़ाकर इसे पूरा करें। इसके फलस्वरूप यह रोग ठीक हो जाता है।
2. प्राकृतिक चिकित्सा से इस रोग का उपचार करने के लिए सबसे पहले रोगी व्यक्ति को सीधे लिटाकर उसके घुटनों को मोड़ते हुए पेट से सटाएं और तब तक पूरी लम्बाई में उन्हें फैलाएं जब तक उसकी गति पूरी न हो जाए और चौकी से सट न जाए। इस प्रकार से रोगी का इलाज करने से रोगी का रोग ठीक हो जाता है।
3. प्राकृतिक चिकित्सा के अनुसार रोगी व्यक्ति का इलाज करने के लिए रोगी के दोनों हाथों को फैलाकर चौकी के किनारों को पकड़ाएं और उसके पैरों को जहां तक फैला सकें उतना फैलाएं। इसके बाद रोगी के सिर को ऊपर की ओर फैलाएं। इससे रोगी का यह रोग ठीक हो जाता है।
4. रोगी व्यक्ति का इलाज करने के लिए रोगी व्यक्ति को हाथों से चौकी को पकड़वाना चाहिए। फिर इसके बाद रोगी अपने पैरों को ऊपर उठाते हुए सिर के ऊपर लाएं और चौकी की ओर वापस ले जाते हुए पैरों को लम्बे रूप में ऊपर की ओर ले जाएं। इसके बाद अपने पैरों को पहले बायीं ओर और फिर दाहिनी ओर जहां तक नीचे ले जा सकें ले जाएं। इस क्रिया को करने में ध्यान इस बात पर अधिक देना चाहिए कि जिस पार्श्व से पैर मुड़ेंगे उस भाग पर अधिक जोर न पड़े। यदि रोगी की आन्त्रवृद्धि दाहिनी तरफ है तो उस ओर के पैरों को मोड़ने की क्रिया बायीं ओर से अधिक बार होनी चाहिए। इस प्रकार से रोगी का उपचार करने से रोगी की आंत अपनी जगह पर आ जाती है।
5. कई प्रकार के आसनों को करने से भी आंत अपनी जगह पर वापस आ जाती है जो इस प्रकार हैं- अर्द्धसर्वांगासन, पश्चिमोत्तानासन, भुजंगासन, सर्वांगासन, शीर्षासन और शलभासन आदि।
6. आंत को अपनी जगह पर वापस लाने के लिए सबसे पहले रोगी को पहले दिन उपवास रखना चाहिए। इसके बाद रोग को ठीक करने के लिए केवल फल, सब्जियां, मट्ठा तथा कभी-कभी दूध पर ही रहना चाहिए। यदि रोगी को कब्ज हो तो सबसे पहले उसे कब्ज का इलाज कराना चाहिए। फिर सप्ताह में 1 दिन नियमपूर्वक उपवास रखकर एनिमा लेना चाहिए। इसके बाद सुबह के समय में कम से कम 1 बार ठंडे जल का एनिमा लेना चाहिए और रोगी व्यक्ति को सुबह के समय में पहले गर्म जल से स्नान करना चाहिए तथा इसके बाद फिर ठंडे जल से। फिर सप्ताह में एक बार पूरे शरीर पर वाष्पस्नान भी लेना चाहिए। इस रोग से पीड़ित रोगी को तख्त पर सोना चाहिए तथा सोते समय सिर के नीचे तकिया रखना चाहिए। इस रोग से पीड़ित रोगी को अपनी कमर पर गीली पट्टी बांधनी चाहिए। इससे रोगी व्यक्ति को बहुत अधिक लाभ मिलता है।
7. इस रोग से पीड़ित रोगी को गहरी नीली बोतल के सूर्यतप्त जल को लगभग 50 मिलीलीटर की मात्रा में रोजाना लगभग 6 बार लेने से बहुत अधिक लाभ मिलता है।
No comments:
Post a Comment